मसिरेखा | MasiRekha
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
359
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मत्तिरेता | १५
भवन नदी, जिनकी श्राड़ ले कर चलने से धूप से सिर बचाया जा सके । वोच-वीच में
एक-दो पेड़ थे । उन्हीं के नीचे थोड़ी छाया थी । थोड़ा बैठने, थोड़ा सुस्ताने के वाद, बह
घहुत कप्ट से टूट चुके शरीर को धीरे-वीरे घसीटती हुई जब घर से निकट पहुँची, त्तब
सुवह् ठत गयी थी । मुन्ने ने श्रव तक क्या क्रिया कौन जाने? वही सुबह में दो मुदुठी
मुरमुरा हाय पर रख कर गयी थी वह । मूख से निश्चय ही वह छटपटाता होगा ।
किसी न किसी प्रकार जा कर पहुँचते हो, सव काम छोड़, थोड़ा चावल पका देगी ।
लेकिन रस्ता था कि समाप्त होना ही नहीं जानता था ।
घर पहुँचते ही शोर-गुल सुनायी पड़ा । यह कया ! यह तो उसी के घर के
सामने से हो श्राचजिं श्रा रही हैं। त्रत श्राशंका से निर्मला का हृदय श्रन्दर-ही-प्रन्दर
कॉप उठा । भीड़ भी थोड़ो नहीं है । उसमें हारू को माँ का स्वर ही सबसे तेज था ।
कोई भी एक वात लेकर सारे मुहत्ले.को थर्रा देने में इस महिला का सानी कोई
नहीं था । एक लड़का है, उम्र से मुन्ने से कुछ बड़ा हो है, पर देखने में समवयसी हैं ।
वह इसी उम्र में बहुत श्रावारा हो चुका है । उसे लेकर हो निर्मला को वहुत उर वा--
उसकी संगत में पड़कर मुन्ना न विगड़ जाय । गन्दी वस्ती के जीवन में सबसे चढ़ी
मुसीबत तो यही ले कर है । चारों श्रोर के इस गन्दे वातावरण से एक कच्ची उम्र के
वच्चे को कमे वचा कर रखा जाय ।
निर्मला को देखते हो रणचंडी को मूतति के समान हारू की मां सामने भ्रायौ ।
स्वर को सप्तम में चढ़ा कर वोली, “बोलो, तुम्दारे लिए क्या यह वस्ती छोड़कर जाना
पड़ेगा ? सुनती तो हैं, भले घर के लोग हो । भले घर के लोग इस तरह के डाकू पैदा
करते हैं, यह चति तो वाप के जमाने मी नहीं सुनी ।''
“वया हुश्रा ?” जंसे-तैसे दम लेकर निर्मला चक्षीण स्वर में वोली 1
“जो हुमा, अपनी ही श्रांजों से देख लो । मैं वोलूंगी तो कहोगी बढ़ा-चढ़ा कर
चोल रही हूं ।'' कह कर वह लगभग भाग कर गयी श्रौर भोड़ के ध्रन्दर से हारू का
हाथ खींचते-खीचते लाकर निर्मला के सामने खड़ा कर दिया । माथे पर थोड़ी जगह
कुछ फूल गई थी । मामूली-सा कट भी गया था, उसके पास खून का दाग था ।
निर्मला ने उस श्रोर एक वार देख उद्विग्न स्वर में हारू से पूछा,
पवते लग गया?
उत्तर उसको माँ ने दिया, “कैसे लगा, यह पूछो श्रपने सोने के
समान पूत से ।””
“मुन्ना से लगा दिया ?”'
लगा काह को देगा? पास से एक व्यक्ति योल उठा, “खेलते-पेलते लग
गयी । बच्चों का कांड हूँ । ऐसे थोड़ी-बहुत तो लग ही जाती हूं ।''
“सका नाम योढा ह? हठातु घपूमकर साड़ी हो हार की माँ ने बोलने वाले
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