हम क्यों रुकें | Hum Kyo Ruke

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Hum Kyo Ruke by श्री रमेलाल बसन्तलाल देसाई - Shree Ramelal Basantlal Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विवाहित मे था । विवाहित हों तो भी युवक युवती को/एकास्स में अकेशे छोड़ना उचित नहीं यह उसकी धघारणान्यी । इस लिए दोनों को चण-क्षण में सावधान करने के हेतु वह उपरोक्त शब्दों से उनका ध्यान अपनी छोर आकर्षित कर लेती थी । इस व्यवहार से किसीका झपभान हो सकता है इतना सधिक छाघुनिक शिष्टाचार उसे मालूम न था । छान्त में रश्मि ऊपर देखे बिना नहीं रह्सका। उसने सुरमि की छोर देखते हुए कहा-- डरे चुम तो परोसे ही जा रही हो यह सब छूट जायगा रश्मि की बोली सुन सुरभि चौंक पड़ी । उसके हाथ से बतन गिर पढ़ा । सनभनाहट की आावाज से समूचा घर यूँज उठा । सुरमि भी रश्मि की शोर देखकर हँस पड़ी या हुआ बेटी चीलमगौरी ने बतैन की हुई छाावाज के साथ ही प्रश्न किया । कुछ नहीं माँ ? सुरभि ने एक वाक्य में उत्तर दिया । रश्मि मे सुरभि की वाणी सुनी । उसने सोचा कि सके कर्ठ में स्वर दे ोर वह भी कोकिल सा मधुर 212 फ्ि घी नौकर ने कहा झात्र घर चलो न ? दूसरे दिन लौटने को माँसे कहुाये थे । उसके बदले तीन दिन हो गये । रश्मि ने सोचा कि नौकर का कहना बिलकुल ठीक है. । बच घर में नेक कार्यों को अधूरा छोड़ ाया है । वेभव भोगने वाले रश्मि को इस जीर्ण मकान का वास क्यों रच रहा है ? बाहर से जीर्ण दिखलायी पढ़ने वाले घरके न्द्र स्वच्छता श्र सफाई की कसी थे थी बल्कि रश्मि के कमरे में तो थोड़ी गृह-स्ंगार की वस्तुएँ भी सजी थीं । पिता के समय की बस्तुँं जो आाज तक र्श




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