जैनव्रतकथासंग्रह रत्न | Jainvratkathasangrah Ratn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
51
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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= ` ऋपिपंचमीततकथा । ७
देख विभति पुत्रकी सोई । सत्यकिधोयरस्वप्राहोई॥&२॥
भविकदत्त बोखो वर बीर । मिरो माय मोको परधीर ॥
मुनेवचन तव संशय गयो । गहभर अंक पुचभेटयो।६9॥
बंघुदत्त जो कीनों पाप । कहो सबे मातासे आप ॥
माता बोलो कर उत्साह । ते वेधुदत्त करे व्याह ६५॥
सो नित चित्त पतित्रतधरे । तापे मूढ व्याह विधिकरे ॥
सतो बहू तुम्हारी आइ । ताको देहु पारनो जाद् ६६॥
वृघ्राभरन दहे मिते मातको पहिरये तिते॥
अरु निजकरकी मुंद्री दे । वेठ सुखासनसों तहूँ गढ़े ६७॥
कमलश्री आवतही देख । रुपश्री मन भई विशेष ॥
मिीपरस्परजियस्ुभयो । करसन्मानवेटकाद्यो ॥६८॥
कमलश्रीमंदिर पर गई । वचन सुनाय सो ट्टी भई॥
तवतिन जानीभपनी साप । पड़! पव हटर्देरसस६९॥
अरु सुतकोआगमनसुनाइ । दें भोजन गृह पहुँचीजाय ॥
भविकदत्त ॒राजापरगयो । मि रजा आनेदितभयोऽ
तथे राय सुन सो वत्तांत । कधन सकोसम्ार महंत ॥
किकर पठटये पटच नाय । वधुदत्तको खाये घाई ॥७१॥
आये ठोग संग के स्वे पृंछतिन्दं सोह दे तवे ॥
तिन राजा से सचीकही । सबधनभविकदत्तको सही ७२
राजासुनतकाप अतिकियों । वन्धुदत्तकदिण्ड सु दियो ॥
अपनिसुता पुनि दौनीराइ । कर विवाह मंदिर परुँचाइ॥७३
भविकदत्त माता गुणभरी । पुत्रठयों मेने झुभ षरी॥
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