विशाखा | Vishakha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.6 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विशाख भी खेत की चोरी में पकड़ा दूँगा । यह लम्बी -चौड़ी बहस भूल जायगी । झरे दोड़ो दोड़ो विशाख - एक शोर देखकर -अरे वह देखो भेड़िया झाया सिक्षु पड़ा कर गिर पड़ता है और विशाख चला जाता है इध-उघर देख कर उठता हुआ -घततेरे की धूत्त बड़ा था । चला गया नहीं तो मारे डणडों के मारे डणडों के-- डण्डा पटकता है -खोपड़ी तोड़ डालता सुश्नवा नाग गाता हुआ आता है-- उठती है लाइर हरी हरी -- पएतवार पुरानी पवन प्रलय का कैसा किये पढेड़ा है उठती है छद्दर हरी हरी । निस्तब्ध जगत हे कहीं नहीं कुछ फिर भी मचा बखेड़ा है उठती है छदर हरी हरी । नक्षत्र नहीं हैं निशा में बीच नदी में बेड़ा हे उठती है छदर इरी दरी । हाँ पार लगेगा घबराओ मत किसने यह स्वर छेड़ा हैं उठती है ठहर हरी हरी । बेड़ा बखेढ़ा खेत सत रौंद नहीं तो पैर तोड़ दूँगा । सुश्रवा--नहीं मद्दाराज में तो पगडंडी से जा रहा हूँ । ८
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