संगीत रत्न प्रकाश [भाग-१] | Sangeet Ratn Prakash [Bhag-1]
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
629
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२२
@ समीतरत्नमकाश ®
1 पु ना न, करने को नाथ ज़र दो ॥ ६ ॥
कर्मानुसार याद में, मानव शरीर पाऊँ।
हे इंश ! जन्म मेरा, सत झाय्यों के घर दो ॥ ७9 ॥
संकट हजार पढ़ने, पर भी धरम न क्रोडं ।
निर्भय, अशोक, बल से पूरित प्रभू जिगर दो ॥ ८॥
कर जोड़ मित्र तुम से, हैं नाथ अब विनय यह ।
झपनाही ध्यान मुकको, नित शाम झोर सहर दो ॥ ६ ॥
भजन २३
टेक-कर छपा पार उतारिथो मेरी द्रटीसखी किश्ती दं ।
तुम अ'विनाशी झजर अमर हो, सारे भूमणडलल के घर हो ।
सबके बाहर भर भीतर हो, कार्रागर बड़े भारी हो ॥
रची सकल अज्य सृष्टी है ॥ मररी० ॥
सव का न्याय करोहो न्या, बिन वज्ञार छोर विना सिपाही ।
करो फेसले क्रलम न स्याही, ऐसे न्यायकारी हो ॥
नहीं गाट्ती पड़ सक्ती है ॥ मेरो० ॥
श्रव तक दुख भोगे हैं भारी, बचुत हुई दुदेशा छमारी ।
छव समाये हम शरण तुम्हारी, तुमद्दी देश हितकारी दो ॥
तारो तो तर सक्तों हूं ॥ मरी० ॥
बिना छूपा करुगानिधे तरी, कुछ नहिं पार बसाती मेरी ।
तेजसिद भारत की बड़ी, कार कमी दुख टारियों ॥
जो इृदय कुमति बखती डे ॥ मेरी ० ॥
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