संगीत रत्न प्रकाश [भाग-१] | Sangeet Ratn Prakash [Bhag-1]

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Sangeet Ratn Prakash [Bhag-1]  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२२ @ समीतरत्नमकाश ® 1 पु ना न, करने को नाथ ज़र दो ॥ ६ ॥ कर्मानुसार याद में, मानव शरीर पाऊँ। हे इंश ! जन्म मेरा, सत झाय्यों के घर दो ॥ ७9 ॥ संकट हजार पढ़ने, पर भी धरम न क्रोडं । निर्भय, अशोक, बल से पूरित प्रभू जिगर दो ॥ ८॥ कर जोड़ मित्र तुम से, हैं नाथ अब विनय यह । झपनाही ध्यान मुकको, नित शाम झोर सहर दो ॥ ६ ॥ भजन २३ टेक-कर छपा पार उतारिथो मेरी द्रटीसखी किश्ती दं । तुम अ'विनाशी झजर अमर हो, सारे भूमणडलल के घर हो । सबके बाहर भर भीतर हो, कार्रागर बड़े भारी हो ॥ रची सकल अज्य सृष्टी है ॥ मररी० ॥ सव का न्याय करोहो न्या, बिन वज्ञार छोर विना सिपाही । करो फेसले क्रलम न स्याही, ऐसे न्यायकारी हो ॥ नहीं गाट्ती पड़ सक्ती है ॥ मेरो० ॥ श्रव तक दुख भोगे हैं भारी, बचुत हुई दुदेशा छमारी । छव समाये हम शरण तुम्हारी, तुमद्दी देश हितकारी दो ॥ तारो तो तर सक्तों हूं ॥ मरी० ॥ बिना छूपा करुगानिधे तरी, कुछ नहिं पार बसाती मेरी । तेजसिद भारत की बड़ी, कार कमी दुख टारियों ॥ जो इृदय कुमति बखती डे ॥ मेरी ० ॥




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