तत्वअर्थलोकवर्तिकालंकार | Tatvarthslokvarttikalankaar Vol 6 Ac 7164

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Tatvarthslokvarttikalankaar Vol 6 Ac 7164 by स्वामी विद्यनंदी - Swami Vidyanandi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राण व्यपरोपणका अर्थ ५६५ प्राणव शरीर जीव्से भिन्न हैं फिर भी प्राणोका थियोग दुखका कारण है ५६५ दारौर ओर मात्माको भिन्न माननेवाले णकान्तवादियोके यहाँ हिसा समभव नही हं ५६६ चक्रदोष ५५६६-६७ स्याद्रादियोके प्राणोके व्यपरोपणसे प्राणी- का व्यपरोपण सभवं ५६८-५७१ जहा प्रमत्तयोग होगा वहा प्राण व्यपरो- पण अवश्य होगा ५७० रागादिके अभावम हिसा नहीह ५७२ सूत्र १४ ५७ ३-५७५ असन्‌का अथं अप्रशस्त ह ५७३ “मिथ्या अनृत' यह ठीक नही है अत्िन्यासि दोष आ जावेगा ५७४ असत्य ओर सत्यकी परिभाषा ५७४ मूत्र ५४ ५ + ५--*१७० कमं नोशमं वर्गणाका ग्रहण चोरी नहीं है किन्तु जिन वस्नुओमे लेने देनेका व्यव- हार होता हे. वहीं अदत्तादानको चोरी कहा ह ५७५ प्रमत्त योगये अदत्तादान चोरी है ५७८ सूत्र ५६ ५५९५८ मैथनकी परिभाषा ५८० ब्रह्म की परिभाषा ५८२ बिना प्रमादके मैथुन सभव नही है ५८२ स्त्री परिषहजय या उपसगंम मुनिके भब्रह्म नही होता ४८३ भत्र १७ ५५८७-५ २ मूर्चछाका अर्थ 1 मूर्छाका कारण होनेंसे बाह्य परिग्रहकों परिग्रह कहा गया ५८४ प्रमत्त योगका अभाव हौनेमे ज्ञान दर्शन चारित्र परिग्रह्‌ नहीहं ५८५ परिग्रह सब पापोका मूल है ५८६ परिग्रहमे चोरौ व अब्रह्म भी होता है ५८७ हिसामें शेष चार पाप आ जाते हैं ५८८ [ १५ ] झूठ चोरी और कुशीलमेसे प्रत्येकमे पाचो पाप गमित है ८८ परिग्रहका लक्षण, मूच्छपिर शका-समा- घान तथा वस्त्र आदि भी परग्रह है क्योकि मूर्छां ५९० पिच्छी कमण्डल परिग्रह नही ह सूच्मसाप- रायादिम इनका त्याग हो जाता हें ५९३ शरीर पूर्वोपाजित कर्मका फल है अत क्षीण मोह हो जानेपर शरीर परित्यागके लिये परमचारित्रका विधान है ५६५ मुनिके आहार ग्रहण करनेम मूर्च्छा नही है, क्योकि वह्‌ नव कोटि विशुद्ध आहार ग्रहण करता हैं ५९५ सूत्र १८ ५९६-५९९ निश्शल्य ओर व्रतीपनके अग-अगी भाव है । प असयत सम्पग्दृष्रिकि घल्य रहित होनेपर भी ब्रतोका अभाव है ५९८ सूत्र १९ ५९९--६०२ आगारका अर्थं ५९९ नेगम सग्रह व्यवहार नये एकं देन व्रतियोका ब्रतियोमे समावेण हौ जाता है ५९९ अनगारका अर्थं ६०१ सूत्र २० ६०२-६०१ अणुत्रतोकां अर्थं ९०२ सूत्र *9 ६०४-६१३ सात शील ब्रतोके स्वरूपका कथन ६०५ प्रोषधोपवास ६१० पाच अमकष्यका कथन, तथा अनिष्ट यान वाहनादि तथा अनुपसंव्य वस्त्रका त्याग ६११ अततियिसविभाग ६१२ सत्र रर ६१३-६२१ मरणका लक्षण ६१३ खत्टेखनाका अथं ६१४ जोषितांका अर्थं ६१९




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