यजुर्वेदभाष्यम् | Yajurved Bhashyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
785
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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एकविशोध्यायः
आ । न: । मिज्रावरुणा । घते: । गठयतिम । उध्ष-
तम । मध्वां । र जा 5 सि। सक्रतडतिं सधक्रत ॥ ८ ॥
पदाथः- (आ) समन्तात् (नः ` अस्पाक्म ( पमित्रावरुणा ) मा
णोदानाविव ( परमैः ) उदकः ( गव्यूतिम् ) क्रोणुढवम् ( उन्तनम् ) सिचतम् |
| ( मध्वा ) पधुना नलेन ( गजांमि ) लोकान् ( सुक्रतू } शोभनाः प्ब्गाः कषां
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शिवा ययोस्ता॥ ८ ॥
अन्वयः-ह मित्रावरुणा पराणोदानवढलमानी सक्तु शिल्पिनो युाररनो |
| गव्यूतिमुक्तनमा मध्वा रजास्थृ्ततप् ॥ ८ ॥
भवाथः चकलत ० -याद शिल्पिना यानानि जलादिना चाः
लयेयुस्तदिं त उध्वाऽवोमार्गेषु गन्नु गन्कृयुः \ ८ ॥
दाथः ह मित्रावरुणा) प्राण आर उदान वायु के समान धत्तेने हारे
या
( सुकतू ) शुभ बुद्धि वा उत्तम कमेयूक्त शिल्पी लागो तुम ( प्रतेः ) जलोसे (नः)
हमारे ( गय्यूतिम् ) दो कोश को ( उत्ततस् ) सेचन करो ओर ( दा, मध्वा ) सब ओर
से मधुर जल से ( रजांमि ) लाकों का संचन करा ॥ ८ ॥ |
भावाथ:--रस मंत्र में वाचकलु ० -ए नी शिल्पी विद्या वाले लोग नाव त्रा
| दि को जल आदि मार्ग से चलावें तं। वे ऊरर और नीचे मार्गों में जाने को समर्थ हो ॥८॥।
श
प्रबाटवन्यस्य वसिष्ठ क्षिः ) त्राभ्नर्देवता |
त्रिप्टप द्वन्द; | धवः स्वरः ॥
प्रिर वद्रानोक वि० ॥
प्रवाहवा सिसतं जीवसं न नो
गव्य तिमस्षतं घतेन । परा सा जने प्रव-
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पनावद्राइपयमाह ॥
| यत युवाना श्रतं म मित्रावरुणा हवं मा॥९॥
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