यजुर्वेदभाष्यम् | Yajurved Bhashyam

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Yajurved Bhashyam by श्रीमद्दयानन्द सरस्वती - Shrimaddayanand Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-.----~--~--~-न--- ~~~ -~ ना एकविशोध्यायः आ । न: । मिज्रावरुणा । घते: । गठयतिम । उध्ष- तम । मध्वां । र जा 5 सि। सक्रतडतिं सधक्रत ॥ ८ ॥ पदाथः- (आ) समन्तात्‌ (नः ` अस्पाक्म ( पमित्रावरुणा ) मा णोदानाविव ( परमैः ) उदकः ( गव्यूतिम्‌ ) क्रोणुढवम्‌ ( उन्तनम्‌ ) सिचतम्‌ | | ( मध्वा ) पधुना नलेन ( गजांमि ) लोकान्‌ ( सुक्रतू } शोभनाः प्ब्गाः कषां ] ] | [ | | | व | हे 1 क शिवा ययोस्ता॥ ८ ॥ अन्वयः-ह मित्रावरुणा पराणोदानवढलमानी सक्तु शिल्पिनो युाररनो | | गव्यूतिमुक्तनमा मध्वा रजास्थृ्ततप्‌ ॥ ८ ॥ भवाथः चकलत ० -याद शिल्पिना यानानि जलादिना चाः लयेयुस्तदिं त उध्वाऽवोमार्गेषु गन्नु गन्कृयुः \ ८ ॥ दाथः ह मित्रावरुणा) प्राण आर उदान वायु के समान धत्तेने हारे या ( सुकतू ) शुभ बुद्धि वा उत्तम कमेयूक्त शिल्पी लागो तुम ( प्रतेः ) जलोसे (नः) हमारे ( गय्यूतिम्‌ ) दो कोश को ( उत्ततस्‌ ) सेचन करो ओर ( दा, मध्वा ) सब ओर से मधुर जल से ( रजांमि ) लाकों का संचन करा ॥ ८ ॥ | भावाथ:--रस मंत्र में वाचकलु ० -ए नी शिल्पी विद्या वाले लोग नाव त्रा | दि को जल आदि मार्ग से चलावें तं। वे ऊरर और नीचे मार्गों में जाने को समर्थ हो ॥८॥। श प्रबाटवन्यस्य वसिष्ठ क्षिः ) त्राभ्नर्देवता | त्रिप्टप द्वन्द; | धवः स्वरः ॥ प्रिर वद्रानोक वि० ॥ प्रवाहवा सिसतं जीवसं न नो गव्य तिमस्षतं घतेन । परा सा जने प्रव- | | | | | पनावद्राइपयमाह ॥ | यत युवाना श्रतं म मित्रावरुणा हवं मा॥९॥




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