मुद्रा शास्त्र | Mudra Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
347
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ ५ |
उसका अंतराष्ट्रीय संबंध अन्य कारणो से ढीला पडते हए भी
मुद्रा-रूपी बधन से जकड़ा रहता ।
मुद्रा-प्रणाली का श्राधिक खवंत्रताम भीबड़ा श्रंशदहै।
राजनीतिक तथा व्यावसायिक स्वतंत्रता में मुद्रा ने जो छाप
लगाई है, वह भुलाई नही जा सकती । सर हैंडीमेन ने ठीक
लिखा है कि रीति-रिवाज तथा लोक-प्रथा के स्थान पर मौद्रिक
ब्यवद्दार का प्रारंभ होते ही सभ्यता बहुत शीघ्रता से थढ़ी ।
मुद्रा के प्रयोग से राज्य-कर तथा मालगुजारी का देना सुगम
हो गया । शारीरिक दासता लुप्त होकर मजदुरी के रूपमे प्रकट
हुई । शर्धदास रुपयों मे मालगुजारी देकर ताह्लुकेदाय की
अनुचित हुकूमत से छुटकारा पा गए । महाशय निकर्सन नें
लिखा है कि “मध्य युग में मुद्दा के बढ़ते ही बहुत से सामाजिक
संशोधन हुप+।” रुपयों में हिसाब किताब कर किसान ताछुके-
दारों की दासता से मुक्त हो गए । युरोपीय नगरो ने रुपया
इकट्ठा करके ताल्लुकेदारों के प्रभुत्व को चकनाचूर किया, मासिक
वेतन पर सिपाहियौ को नौकर रख कर श्रात्म-संरक्तण का मागे
निकाल लिया श्रौर श्रपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित किया । रुपयों
में मालयुजारी देना शुरू होने पर स्वेच्छाचारी राजाओ ने
मालगुजारी बढ़ाना प्रारंभ किया । इस स्वेच्छाचार को नष्ट
करने के लिये जनता सघटित हे । धीरे धीरे युरोप मे लोक-
` *# निकटतन जिलित--मनी रेएड मानिटरी प्राञ्तरम्न । पञ्चभ-संस्करश
परु०.१७ `` ` भ -
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