मुद्रा शास्त्र | Mudra Shastra

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Mudra Shastra  by Pran Nath Vidhyalankar - प्राण नाथ विद्यालंकार

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ५ | उसका अंतराष्ट्रीय संबंध अन्य कारणो से ढीला पडते हए भी मुद्रा-रूपी बधन से जकड़ा रहता । मुद्रा-प्रणाली का श्राधिक खवंत्रताम भीबड़ा श्रंशदहै। राजनीतिक तथा व्यावसायिक स्वतंत्रता में मुद्रा ने जो छाप लगाई है, वह भुलाई नही जा सकती । सर हैंडीमेन ने ठीक लिखा है कि रीति-रिवाज तथा लोक-प्रथा के स्थान पर मौद्रिक ब्यवद्दार का प्रारंभ होते ही सभ्यता बहुत शीघ्रता से थढ़ी । मुद्रा के प्रयोग से राज्य-कर तथा मालगुजारी का देना सुगम हो गया । शारीरिक दासता लुप्त होकर मजदुरी के रूपमे प्रकट हुई । शर्धदास रुपयों मे मालगुजारी देकर ताह्लुकेदाय की अनुचित हुकूमत से छुटकारा पा गए । महाशय निकर्सन नें लिखा है कि “मध्य युग में मुद्दा के बढ़ते ही बहुत से सामाजिक संशोधन हुप+।” रुपयों में हिसाब किताब कर किसान ताछुके- दारों की दासता से मुक्त हो गए । युरोपीय नगरो ने रुपया इकट्ठा करके ताल्लुकेदारों के प्रभुत्व को चकनाचूर किया, मासिक वेतन पर सिपाहियौ को नौकर रख कर श्रात्म-संरक्तण का मागे निकाल लिया श्रौर श्रपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित किया । रुपयों में मालयुजारी देना शुरू होने पर स्वेच्छाचारी राजाओ ने मालगुजारी बढ़ाना प्रारंभ किया । इस स्वेच्छाचार को नष्ट करने के लिये जनता सघटित हे । धीरे धीरे युरोप मे लोक- ` *# निकटतन जिलित--मनी रेएड मानिटरी प्राञ्तरम्न । पञ्चभ-संस्करश परु०.१७ `` ` भ -




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