दिन बुनता सूरज | Din Bunta Sooraj

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Din Bunta Sooraj by माधुरी शास्त्री - Madhuri Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घर आकर मने मम्मी स सयस पहला प्रश्न यही किया कि आज कान इस दुनिया से कूच कर गया माताजी ? (मन मम्मी स इसलिए पूछा था कि महिलाएं ही अवसर घर पर रहती ह एव सहटय होन के नाते व ही मोहल्ल वाला क दुख सुख की सारी खबर रखती ह )... परन्तु मम्मी ने अपनी अनभिज्ञता दशाई म भी यही सोचकर अपने-आपम व्यस्त हा गया कि यह ता दुनिया ह यहा आवागमन तो लगा ही रहता है। मं अपने कमर म कपडे चेज करने क लिए आ गया ¦ आदत्‌ के अनुसार पर पुर वालक्नी वौ आर बढ गय । मीच झाक कर देखा ता वैच वाली थी। हूत भर जव तय देखता रहा । उस मकान म भीड़ ता अवश्य दिखाई देती पर वह कहीं भी नहीं दिखाई दी । परीक्षाए सिर पर आ गई थी । सतीश मरे नोट्स लेकर चला गया था इतजार करने के वाद भी लाटान नहीं आया था। इसलिए म ही उसक घर जाकर अपनी नाट्स वाली कॉपी लेकर जब घर लाटा ता मम्मी मे बताया कि आज बनारस वाले ताऊजी आ रहे ह ... स्टेशन पर जाकर उन्हे ले आऊ । मने उनके हाथ से लेकर पत्र पदा फिर हाथ मे वधी घडी की ओर देखा अभी टेन आते मे सवा घटा वाकी था। मने चन की श्वास ली कमरे में पहुंचा फ्रेश होकर तालिया सुखाने वालकनी म चला गया नीचे ्ाक्कर देखा वच खाली थी । एक झुझलाहट भरी निराणा मन में व्याप्त गई । टेन अने म आधा घटा अभी-भी शेप चा था। म ताऊजा का रिसीव करन के लिए स्टेशन जने लगा ता दीदी ने दौड़क्र आवाज दी--“राज्‌ मम्मी कह रही हं कि लाटते समय धोड़े से पान लगवा क्र ले आना ताऊजी कौ पान खाते की आदत है । सुनते हा मने थोडे से गुस्से म भर कर उत्तर दिया ~ ओर सगमे पीकदान भी ले आऊगा वर्मा _ ताऊजी वाश वेसिन की जो हालत बनाकर छोड़ेग वह देखन लायक ही होगी ।” मेरी आखा मे ताऊजी का वनारस वाते घर का बाथरूम ओर सीढ़ियों की कोने बाली दीवारें कोध गई। मन एक अजीव-सी खिनखिनाहर से भर उटा स्टेशन पहुंचा तो मालूम पड़ा कि ट्रेन आज आधा घटा लेट है। मन में एक बारगी विचार आया किं घर लौट जाऊ लेकिन फिर न जाने क्या सोचकर कही रुका रहा ! वक्त काटने के लिये निरर्थक इधर से उधर धुमता रहा। ~ आती-जाती गाड़ियों को देखता रहा । तभी एक विचार कौधा कि स्टेशन पर बैठकर जिदगी के विविध पक्षो पर बहुत कुछ लिखा जा सकता ह । ...कोई चित्रकार भी चाहे तो यहा किसी वेच पर वट कर जिंदगी की सच्चाइयो को 13




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