प्रतिनिधि हिंदी कहानियां १९८५ | Pratinidhi Hindi Kahaniyan 1985
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भुटपुटा / 15
था जैसे बुछ है जो पकड़ में नहीं आ रहा है, जो हाथों में से छूटता-सा जा रहा है।
कही कुछ फूट पड़ा हैं, जो कादू में नहीं भा रहा है। तभी यह चुपचाप भौर लोगों
के तर्क सुनने सगा था । सभी पश्मों के, सभी मतों को सुनता रहता और केवल सिर
हिलाता रहता । उसकी अवधारणा फहीं जमने भी लगती तो तक-जुतकं के एक ही
शपेड़े में वह वालू की भीत वी तरट् इह जाती थी 1 दस, इतना ही रह गया था
कि जब कोई रोमाचिकारी घटना घटती तो वह सिर हिला कर कहता:
बहुत चुरा हुआ है। च-च-च, बहुत बुरा । ऐसा नही होना घाहिए था 1”
इससे आगे उसका दिमाग काम नहीं कर पाता था । था फिर दिमागी
उधेड्युन शुरू हो जाती थी ।
लगभग दो बजे ल्टेतों का एक मिरोह मुहल्ते में घुपा था । मोती नगर की
ओरसेयेतोग माये ये। सादिया भौर सोहे की लंबी-तवी छ़ें उठाये हुए थे। उस
वक्त कनैयालाल मृहल्ते फे कुठ लोगों के साथ बाहर चोक मे पड़ा था । वे लोग
खलतेनचलते, सीधी सड़क छोड़ कर वामें हाथ को घूम गए थे, और आपयाों से
मोल हो षट थे । उनके ओपछल हो जाने पर चौक में खड़े लोग कयास लगाने सगे
थे कि वह किस दूकान पर वार करने गए होंगे 1
वहे हलवाई की दूकान थी । यही बहुत से लोगों का कयास भी था । इसका
पता घुएं के उस बवंडर से संग गया था, जो उस और से शीघ्र ही उठने लगा
था।
तरह-तरह की टिप्पणियां कन्हैयालाल के कानों में पड रही थी--
“मैंने बल रात ही कहां था कि गड़वड होगी, मुहल्ले की एक कमेटी बना
लो । जव कोई गुण्डें आयें तो उन्हें मुहल्ले के अंदर ही नद्दी घुसने दो ।””
यह् मल्होतरा था, चौथे ब्लॉक वाला ।
इस पर कोई नहीं वोला ।
“इन सरदारो को एक चपत तो पड़नी ही चाहिए +” कोई दूसरा आदमी
कह रहा था । “उन्होंने 'अत्त' उठा रखी थी 1”
इस पर भी कोई नहीं बोला ।
कृष्णलाल की बूढ़ी मां कही से चली था रही थी । चौक के पास पड़ी मंडली
के पास से गुजरते हुए बोली : “वे जीण जोगियो, इन्हों नू रोक देयो। इन्हां नू
मना करो ।”
पर किसी ने जवाव नहीं दिया । इस पर वुद्धिया खड़ी हो गई, “मेरा दिल
थर-थर कॉंपता है । मेरे तीनों बेटे अमृतसर में है । यहा तुम सिखो को बचाओगे
तो कोई माई का लाल वहां मेरे बच्चों को भी वच!येगा 1”
फिर भी किसी ने उत्तर नही दिया 1
जमाना था जब कही पर भी झगड़ा हो जाने पर कन्हैयालाल उसमे कूद
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