भारतीय दर्शन | Bhartiye Dharshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhartiye Dharshan  by वाचस्पति गौरोला - Vachaspati Gaurol

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वाचस्पति गौरोला - Vachaspati Gaurol

Add Infomation AboutVachaspati Gaurol

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१९१ दर्श्नशास्त्र जिज्ञासा का भ्र्थ है ज्ञान को इच्छा (ज्ञात इच्छा) । यही जञानेच्छा हमें जोवन कै प्रति, जगत्‌ के प्रति नये-नये भन्वेषणो, श्रनुसंघानों श्ौर झाविष्कारों में प्रवृतत करती है । इन नयौ क्रियाभ्रो एवं प्रवृत्तियों से हमें नया ज्ञान मिलता है; नया दर्शन उपलब्ध होता है । क्योंकि जीवन की मीमांसा करना ही दर्शन का एकमात्र उदेश्य है, भ्रतः जीवन से सम्बन्धित जितने भी श्राध्यात्मिक, श्राधिदैविक तथा झाधिभौतिक थदार्थ है उनका तात्विक विश्लेषण करना भी दर्शन का कार्य हो जाता है । दर्शन श्रौर विज्ञान तात्त्विक दृष्टि से संसार के समस्त पदार्थों को दो भागों मेँ विभक्त किया जा सकता हँ सचेतन श्रौर श्रचेतन । इन द्विविघ पदार्थों के बाहरी स्वरूपों पर विचार करने वाले शास्त्र को विज्ञान श्रौर उनकी भोतरौ सूच्मताश्रो का अन्वेपण-परीक्षाण करने वाले शास्त्र को दर्शन कहते हैं । तात्पर्य भेद से दर्शन श्रौर्‌ विज्ञान कौ अनेक कोटियोाँ है । मनोविज्ञान, भौतिकविज्ञान, शरीरविज्ञान, समाजविज्ञान श्रौर भ्रन्यान्य विज्ञान जीवन तथा उसको जन्मस्थनो एवं केमंस्थलौ, इम सृष्टि को व्याख्या श्रपने अपने ठंग से एव श्रपनी-ग्रपनी विधिम करते ह । उन सबकी श्रलग-प्रलग उपलब्धि जवन क भिन्न-भिन्न पहलुप या पक्षों का उद्घाटन करने तक संमित है) दर्शन शास्त्र का एक उद्देश्य यट भी हू कि उक्त विज्ञान-शाखाश्रो में सामंजस्य स्थापित करके उन्हें एक सुत्र मे ग्रथित किया जाय । इस दृष्टि से दर्शन भी एक विज्ञान हे । दर्शन समस्त शास्त्रो का संग्राहक दशंनशास्व समस्त शस्त्रो या विद्याप्नो कासार, मूल, तत्व या संग्राहकं ह । उसमे ब्रह्मविद्या, श्रात्मविद्या या पराविद्या (मेटाफिजिक या. फिलॉसोफी भ्रापर), श्रध्यात्मविद्या, चित्तविद्या या प्रन्त.करणशास्वर (सायर्कोलोजौ या दि सा्यस्त भं माइड), तकं था न्याय (लॉजिक या दि. सायस भ्रोफ रीजर्निंग), भ्राचारशास्त्र या धर्ममौमासा (एयिक्स या दि सायंस श्रॉफ काडक्ट), श्रौर सौन्दर्यशास््र या कलाशास्व (ईस्थटिक्छ यादि सायंस श्रॉफ श्रार्ट) झादि सभी विपयों का परिपूर्ण शिक्षण-परीक्षाण प्रस्तुत किया गया ह । इस दृष्टि से भारतीय श्रौर यूरोपीय दर्शनों का परस्पर समन्वय भी देखने को मिलता है । दर्शनशास्त्र के इसी सवंसंग्रहौ स्वरूप को लय करके प्रौढ दाशनिक भारतरत्न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now