भूलों का भूलों | Bhoolon Ka Bhoolon

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Bhoolon Ka Bhoolon  by केवलानन्द सरस्वती - Kevlaanand Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) का खणड़न किया है। । मेंने भी कई बार उन की बात सुनी हैं| वेल्लाग वग चातां का खगड़न तथा अच्छी बात का मरडन किया करते है । आप पकतफं ही डिंगरी न कर | बृद्ध-- बस महारा? छप मी श्राय्यं समाजो मसत देते हैं | तभी ता ऐसी बाते करते हे । साघु-जो हाँ, में श्राय्य॑ ते अवश्य हं। परन्तु श्राय्यं समाजी नहीं हूं | क्यों कि श्राय्य समाज के रजिस्टर सें न ते मेगा नाम है श्रीर ना में झ्ायलमाज में नियम पूवक जाता हीदं) चृद्ध--फिर आप शरपने आपको श्राय क्यों कहते हो ? साघु-ज़ितने मनुष्य अपने श्यापकों ( भूल के कारण ) हिन्दू कते हैं, उनका पुराना नाम आय ही ता है श्रौर इस देश करा नाम भी प्राचान न्रन्थां मे ( श्रायाकच्त्त) ही लिखा मिलता ] कया? झापने किस सनातनो परिडतके मुख से) संकल्प पढ़ते समय नहीं सुना (जम्नू दपि भरत स्वणडे श्रःय{वत्ते; यचनराप्य क सखम्यसे इसदेशका नाम, श्रा्यावन्तं के स्थान में हिन्दुस्थान पड़गया हैं ' बस इस नते सेमेभी प्रायं तथा श्रापमभाश्रयेहें। क्यों किञ्चायं नाम ष्ठ गुणं मुक्त मनष्य का है । जैसा कि श्मग् कोशम लिखा ह क्रि (महां दुन कुलीनाय; सभ्य सन साधत्रः) यथात्‌ श्रषठ कुलात्पन्न सभ्यता युक्त सज्न स्वभाव मनुष्य श्रायं कहलाते हैं ] श्रतपएवर हम श्रायसमाजी न होते हुए भी, उनकी मानने योग्य बातें का मानते हैं | और श्रापको भी साननी चाहिये । भला ? जिस जाति ने झपने श्रसली नामके भूलकर दूसरों का रक्ला नकली नाम स्वीकार करलिया होते बताइये, उस जाति की नीति रीति पवं सभ्यता की रक्षा, केसे और कब दोलकली हैं ।




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