स्वच्छन्दतावादी काव्य का तुलनात्मक अध्ययन | Swacchandtavadi Kavya Ka Tulnatmak Adhyyan

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Swacchandtavadi Kavya Ka Tulnatmak Adhyyan  by रामगोपाल परदेसी - Ramgopal Pardesi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भ्यम्‌ लघ्याय १. धिषय प्रदेश १. क्षोध कते प्रक्रिया एदं लक्ष्य :- हिन्दी ये धनुमंघान कौ प्रक्रिया अत्यन्त प्राचीन होते हुए भी गत दो ददान्दियों से वह अग्रेजी शब्द “रिसर्च” (रि८६८०ा८) का पर्याय बन गयी हैं । बनुमघान के तीन चिक्षिप्ट धर्म माने जा सकते हैं--१. नवोन तथ्यों को खोज, २- उपलब्ध तथ्यों को नवीन ब्यारपा और ३- ज्ञान सेत्र का विस्तार । तथ्यों की खोज और उनकी व्यारूपा मं पर्याप्त अन्तर है । सत्य के प्रत्यक रुप के साथ अनेक तथ्यी वा सम्बन्ध होता है । इन में से कुछ तथ्य तो प्रकाश में आते हैं और अनेक प्रच्छम रह जाते हैं। इस प्रकार जो प्रच्छ तष्य कालके अंघ-गते मे विदीन हो गये हैं, उनवी खोज करना अत्यन्त आवश्यक है । समे इस निप्वपं पर न पहुँचना चाहिये कि तथ्यानुमंधान मुत्यतः प्राचीन विपयों वी दोघ में ही सम्भव हो सकता है । तथ्यानुमंधान के प्रधानत: दो रूप हैं १, काल-प्रवाह में सुप्त तथ्यों की खोज । २. धिपयमें निहिते तथ्यों कौ खोज 1 जैसे तथयुयों के पारस्परिक सम्बन्ध वा उद्घाटन करना हो तयुयास्यान का लद्ष्प है । इसके द्वारा मानव-सत्य था मानव चेतना एवं प्रतिमा का ददानि कराया जाता है 1 दम प्रचार तय्यारूपान से मानव-मात्मा का साक्षात्कार करना ही इस रूप का ध्येय है। अनुमंघान का तीमरा तत्व है ज्ञान-ल्लेत्र का विस्तार । वास्तव में यहीं अनुमंघान बा प्राण है । तथ्यों की सोज और उनवी व्याण्या (तथ्यास्यान) इमी तत्वो- पल के साधन मार हैं । ज्ञान-दृद्धि ही अनुसंधान का मूल उद्देश्य है। जो विवेचन ज्ञानवृद्धि में सहायक न होगा, वहू अनुसंधान वी परिधि में नहीं आयेगा । अतः ज्ञान शितिज वा दिस्तार ही अनुमंपान दा मुस्य धर्म हैं । “आलोचना” का दाब्दिक में है समग्र निरीक्षण । साहित्यिक आलोचना माहिन्यिक कृतियों का सांगोपांग निरीक्षण करदती है! इस प्रक्रिया के तोन विशिष्ट




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