हम्मीर महाकाव्य | Hammir Mahakavya

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Hammir Mahakavya  by ताऊ शेखावाटी - Taau Shekhaavati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यै राजपूत ज्याँरी गरदन वटणे कटगी पण कुकी नहीं । बद्दं भी दमण रे श्रग्े रजपूती पगडी दुवी नहीं 1 श्रं रजप्ूतौ मही हम्मीर राजा हयो श्रव नामी हं। जो भ्राज सुणावू ह थाने ~ वी री ही श्रमर वहाणी हूँ। श्रं प्ररे गनपूतां माही वचां ताण मरज्यावभियो 1 नहीं होयो कोई भी सुर्वीर श्रेया को वचन-निभावणियो। , जौ भारत री सस्कृति, धरम कुछ री मरजादा र ताँगी। खुद ज्यान सुंटा वैष ग्रपणी सरणागत री रच्छया नाणी । वी राजस्थानी मौरद ने श्रावोसारामित नमणक्रा। गाया इं धनी र वेदै हम्मीर-हठी री श्रवण क्रा! हैं भ्राज जरूरत षणी देस रं ज्वानां नै वनलावण री! इ वीर धया र॑ वरटानं यीरारौक्या सृणाव्ग री) हम्मीर महाकाव्य




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