मध्यकालीन बोघ के आधुनिक संदर्भ | Madhyakaaleen Bogh Ke Aadhunik Sandarbh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधुनिक सन्दर्म मे रामचरितमानस कौ सार्थकता 17 रद करहु सव वर परितोप्‌ 1 न तर तात होइहिं बटदोपू।! जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी । सो नृप मवति नरक अधिकारी 11 (2/2, 3) यदि आजकल के शासव उपरिलिखित पवितयों के (विदेषत अन्तिम पवित के) भावों वो अपने जीवन में ढाल लें, तो भारतवर्ष पुन सोने की चिडिया बन सकता है क्योकि श्रप्टाचार ही भाईभतीजावाद, रिर्वतसोरी, क्यनी मौर करनी मे अन्तर, बढती हुई महगाई आदि तथा व्यापव असन्तोप को जन्म देता है । तुलसी के राम समदर्शी थे । सारा प्रजावगं उनव लिए समान था। छोटे- बड़े को भावना के प्रदर्शन से वे किसी को भी दु्वी नही करना चाहते थे । इसीलिए जब वे रावणवध के पदचात अयोध्या लौटे तो दर्शनों के लिए लालायित अपार जनसमूह को अनेक रुप धारण करके एक साथ ही मिलते हैं -- आवत देखि लोग सब, कपासिधू, भगवान । नगर निकट प्रमु प्ररे, उत्तरेड भूमि विमान 1 (7/4 (क) अमित रूप प्रगट तेहि काला 1 ययायोग मिलि सवि कृपाला 1! कृपादृष्टि रघुवीर विलोक । दिये सक्रल नरनारि विसोकी ॥ छन महि सहि मिते भगवाना । उमा मरम यह वाहने जाना ॥ (2/5/3-4) जनता जनादन के प्रनि भनन्य अनुराग जिसका आत्यन्तिक मभाव आजकल फे शासको मे लक्षित होता है, हमारी बहुत-सी प्रजा की बुशल क्षेम सम्बन्धी समस्याओं की कुजी है । ~ स्वैच्छाचारी ओर निरकुश शासक को तुलसी हेय समञ्षतं है । उनका राम भ्रजा कौ यह्‌ अधिकार प्रदान करता है कि वे अनीतियुक्त बात कहने पर उस रोके जौ भनीति कष्‌ भार्षो भाई । तौ मोहि बरजहु भय विसराई ॥ (71423) तुलसी की दकियानूसी, भ्रतिक्रियावादौ तथा प्रगतिका विरोधी कहने वाने साम्यवादी सिद्धान्तो कै पृथ्ठपोपक्र उससे मानवीय स्वतन्त्रता का पाठ सीख सकते हैं। तुलसी से वढ़कर मानव स्वतन्त्रता का समर्थक वीन हो सकता है जिसने परमानन्दसन्दोह, अखिल ब्रह्माण्डनायक, व्यापक, अज, अनीह, निर्गुण ब्रह्म कं अवतार श्रीराम से कहलवाया है, “हे समस्त नागरिकों ! मेरी बात सुनिए ।' न इस वाणी मे ही मेरी कोई ममता है जिसके न मानने से मुझे छेद होगा । न राजा होने वे अधिकार से मैं कहता हू कि मेरी माज्ञा आपवो साननी ही पडेंगी और से अन्याय वी ही दात कहता हु। अत सकोच और भय छोड कर मेरी बातो को भुन लो भौर यदि तुम्हे मच्छी लगे तो उसका मनुसरण करो




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