बंकिमचन्द्र चटटोपाध्याय | Bankimchandra Chattopadhyay

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Bankimchandra Chattopadhyay by एस. के. बोस - S. K. Bose

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 बकिमचन्द्र चट्रोपाध्यार इण्डियन सिविल सर्विस (भारतीय असैनिक सेवा) में नियुक्ति का अधिकार व दिया गया था, लेकिन नौकरशाही के हथकण्डों के कारण आगे काफी समय तक भारतीयों के लिए इस सेवा में प्रवेश सम्भव नहीं हो सका । कहीं जाकर 1863 में पहले भारतीय मत्यन्दनाथ ठाकुर को इस 'दिव्यसेवा के मिहद्वार' में प्रवेश करने का अवसर मिला । मिविल सविस परीक्षा में बैठने की आयुसीसा को कम करने का उद्देश्य स्पष्टत इस सेवा में भारतीयों के प्रवेश कों सीमित करना था | आयुसीमा को इस सनमाने ढंग से कम करने के विरुद्ध सुरेनद्नाथ वन्दोपाध्याम तथा अन्य व्यक्तियों के नेतृत्व मे शिक्षित वगं ने एक जोरदार आदोलन शुरू किमा । इस सिविल मविय आदोलन के कारण राष्ट्रीय एकृता की भावना उतत हदं ! वकिम हालाकि एकः मूकद्शक की तरहं यह मव देख रहै य, लेकिन उनको अधिक निराशा तव हुई जव युवा ब्रिटिश नागरिकों को, जिन्होंने उनके अधीन प्रशिक्षण प्राप्त किया था, उनसे ऊपर के पदो पर आसीन कर दिया गया । अब फिर हम बंकिम के बचपन के दिनों की ओर लौटते है । उनकी अपने पारिवारिक देवता राधा वल्लभ में विशेष रुचि थी, जिनकी पुजा उनके परिवार मे बड़े उत्साह से की जाती थी! रथयात्रा पर्व के समय वड़ी धूमघाम से समारोह मनाया जाता था, जिमका के वहौ देवता होते ये । वकिम के पैतृक धर क निकट एक मेला लगता था । इस मेले मे वहत से लोकप्रिय आकर्यण होत थे जिनमें कठपुतली का नाच भी एक था । प्रारम्भ से हो स्वतश्र-चिन्तक बकिम आभ चलकर राधावल्लभ या यो कहे कि कृष्ण सम्प्रदाय के भक्त बन गए । ' बंकिंम ने स्वयं सजीव की कृतियों की भूमिका में अपने प्रारंभिक जीवन की कुछ झाकिया प्रस्तुत कौ हैँ । उनको शिक्षा घर पर एक स्थानीय पाठशाला (गाव की प्राथमिक पाठशाला) के प्रधानाध्यापक के अधीन शुरू हुई । लेकिन उन्हे गांव में दी गई शिक्षा से विशेष लाभ नदी हुआ । उनकी वास्तविक शिक्षा वस्तुत 1844 में मेदिनीपुर में शुरू हुई, जहा उनके पिता की नियुक्ति हो गई थी । वहा उन्होंने एक अप्रेजी स्कूल में अंग्रेज हेडमास्टरो के अधीन शिक्षा प्राप्त की 1 बचपन में बकिम ने असाधारण प्रतिभा का प्रदर्शन किया । वह अपने प्राठ आश्व्- जनक वुद्धिमत्ता और तेजी से ग्रहण करते थे 1 इससे उनके पिंता उनकी शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देने लगे । मेदिनीपुर मँ अत्रेजी के जान कौ उनकी दृढ़ आधारः पिला रखी मई 1 हमलौ कलिज मे, जहा वे वादमे पढ़ने के लिए गए, यह्‌ आधार शिला ओर मजवृत्च हो गई । उनका भापा पर इतना अधिकार हो गया कि वाद




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