सत्ता स्वरुप | Satta Swarup

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घत्तस्वरूप ] [ ११ परन्तु श्रव तुम सच्चे जेनमतके सेवक बनो श्रौर उसप्रकारके कायेति तन नादि नही लगाभ्रो तो इस मतमें श्रानेसे भी तुम्हारी शक्ति घट गई झथवा कपटसे लोकको दिखलानेके लिए सेवक हुए हो ब उनकी महानता तुम्हे भासित नहीं हई तथा तुमको उनमें कुछ भी फलकी प्राप्ति होना भासित नही हुम्रा व तुम्हारे हूदयमें यथाथं रहस्य नहीं उत्पन्न हृभ्रा जिससे तुम स्वयमेव उत्साहित होकर इन कार्योमिं सुखरूप यथायोग्य प्रवर्तन नहीं कर सकते । भ्रथवा पंचायत या वक्ताके कट्नेसे व प्रबन्ध बधानेके प्राश्रयसे निराञ्च होकर प्रवर्तति हो तथा तुमको यह्‌ कायं फोके भासित हुए ऐसा लगता है, उसका कारण क्या है ? यहाँ तुम कहोगे कि रुचि उत्पन्न नही होती -उमंगपूर्वक शक्ति चलानेका उद्यम नहीं होता, ष्टां हम गया करें ? इसपरसे ऐसा विदित हुभ्ा कि तुम्हारा भविष्य ही भ्रच्छा नहीं है । जिसप्रकार रोगीक 1 श्रौषधि श्र झाहारन हीं रुचता हो, तब समभना चाहिए कि उसका मररा निकट झ्रा गया है, उसी. प्रकार श्रपने अन्तरंगमे वासना उत्पन्न नहीं होती श्रौर मात्र महान्‌ कहलानेके लिए तथा दस पुरुषोंमें सम्बन्ध रखनेकें लिए कपट करके श्रन्यथा प्रवर्तते हो उसमें लौकिक श्रज्ञानी जीव तुमको भला. कह देगे परन्तु जिनके तुम सेचक बननेवाले हो वे तो बेवलज्ञानी भगवान्‌ है, उनसे तो यह कपट चपा नहीं रहेगा तथा परिणामोंके श्रनुसार कर्म बेँघे बिना नहीं रहते, श्रौर तुम्हारा बुरा करनेवाले कमें ही हैं, इस- लिए तुमको इसप्रकार प्रवर्तनेमे क्या लाभ हुआ ? तथा यदि तुम इनसे विनयादिरूप, नम्रतारूप व रसस्वरूप नहीं प्रव॒र्तते तो तुमको उनका! महान्‌पना व स्वामीपना भासित नहींहुभ्रा । वहाँ तो तुम्हारे भ्ज्ञान झाया । तो फिर बिना जाने सेवक यों हुए ? तुम कहोगे कि हम जानते है, तो इन देवादिकके लिए उच्चकायेमिं मिथ्यात्व जैसी उमगरूप भवृत्ति तो न हुई । जिसप्रकार कुत्ट स्त्री परपुरषको प्रपना पति जानकर उसरू कायं करती थी, उदे च्छा भोजन न्विलातौ धी परन्तु किसी भाग्योदयस




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