पशुबलि निषेध | pashubali Nishedh

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pashubali Nishedh by धीरेन्द्रकुमारजी शास्त्री - Dhirendrakumarji Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ११ >) हिसाकर्म॑तःप्रतिषेध , । अर्थात्‌ जो हिसा कर्मका निषेध करे उसे अध्वर कहते हैं । तथा वेदम भी अध्वर शब्दका अर्थं अहिसा लिखा है । यथा--अम्बयो यन्त्यप्वभि जमियों अभ्वरीयताम्‌ । श्तीमधना पयः ।१। इति अथववेद का° १ अनुवाक १ सूक्त ॥ अर्थ-- पाने योग्य मातायें और मिलकर भोजन करनेवाौ बहिन वा कुलस्त्रिय मधुके साथ दृधरकौ मिलातौ हुई हिसा न करनेवाठे यजमानेकि सम्मार्गमे चलती हैं । अन्यच्च देवौ भागवत्‌ -- जिसमें हिसा दो वह॒ सलय नदी है जिसमे दया उपकार दो वह अमत्य भौ सत्य है (१) द्लोकं १ स्क० ३ अ०११॥ दवजरभगरतेवे द दर्शितं हिंसनं पशोः। जिह्ास्वाद परेः कामि सेव परामताः ॥ ८ इति स्क ६ अभ १३) अ्थति--भगोमे रक्त ब्राह्मणोने अपनो रमनास्वादके ल्यि वेदमे पशु हिसाका विधान किया है । अदहिसाकि समान परम पवित्र घर्म दसरा नहीं है । अन्यच्च--जो पुरुष या स्त्री देवी-देवताओंको मनुष्य या पशुकी बलि देते हैं. और माँस खाते हैं वे नरकोंसे उन्ही जानवरासे खाये जाते हैं । इति स्क० ८ अ०१३॥। अन्यच्च बा० पु०--अपने प्राणेको छोड़ना अच्छा है, किन्तु किसीकी हिसा करना अच्छा नहो है, मौन करना अच्छा है, परन्तु अमत्य बोलना अच्छा नहीं, नपुसक होना अच्छहै, परन्तु परस्त्री रमण करना अच्छा नहीं, भिक्षा मागना अच्छा है, परन्तु परघनक्रा हरण अच्छा नही । अब आप लोग विचारिये कँ तो सनातनधर्मका इतना ऊ चा सिद्धान्त,




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