शरत रचनावली भाग - 3 | Sarat Rachanavali Bhag - 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
435
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृष्टि तत्क्षण पड़ी । कुछ भी न पूछकर उसने पहले उसे खोलकर खाना आरम्भ करते हुए
कहा--'पत्तो, पंडितजी ने क्या किया ?'
'बड़े चाचा से कह दिया ।!
देवदास ने हूंकारी भरकर, आंख तरेरकर कहा--'बाबूजी से कह दिया ?
'हां।'
“उसके बाद ?'
तुमको अब आगे से पाठशाला नहीं जाने देंगे ।'
'मैं भी पढ़ना नहीं चाहता ।'
इसी समय उसका खाद्य-द्रव्य प्राय: समाप्त हो चला । देवदास ने पार्वती के मुख की
ओर देखकर कहा--' सन्देश दो ।'
सन्देश तो नहीं लायी हूं ।'
'तब पानी लाओ ।'
'पानी कहां पाऊंगी ?'
देवदास ने विरक््त होकर कहा--'कुछ नहीं है तो आयी क्यों ? जाओ, पानी ले
आओ ।'
उसका रूखा स्वर पार्वती को अच्छा नहीं लगा । उसने कहा--'मैं नहीं जा सकती,
तुम जाकर पी आओ ।'
'मैं क्या अभी जा सकता हूं ?'
तब क्या यहीं रहोगे 2”
'यहीं पर रहूंगा, फिर कहीं चला जाऊंगा ।'
पार्वती को यह सब सुनकर बड़ा दुख हुआ । देवदास का यह आपत्य बैराग्य देखकर
और बातचीत सुनकर उसकी आंखों में जल भर आया; कहा--'मैं भी चलूंगी !'
कहां ? मेरे साथ? भला यह क्या हो सकता है ?'
पार्वती ने सिर हिलाकर कहा--चलूंगी !'
'नहीं, यह नहीं हो सकता । तुम पहले पानी लाओ ।'
पार्वती ने फिर सिर हिलाकर कहा- -'चलूंगी !'
पहले पानी ले आओ |
'मैं नहीं जाऊगी; तुम धाग जाओगे ।'
“नहीं, भागूंगा नहीं ।'
परन्तु पार्वती इस बात पर विश्वास नहीं कर सकी, इसी से बेठी रही । देवदास ने
फिर हुघम दिया--' जाओ, कहता हूँ ।'
'में नहीं जा सकती ।'
क्रोध से देवदास ने पार्वती का केश खीं चकर श्रमकाया--'जाओ, कहता हूं ।'
पार्वती चुप रहीं । फिर उसने उसकी पीठ पर एक घूंसा मारकर कहा--'मही
जाओगी ? ' ं
पार्वती ने रोते-रोते कहा--'में किसी तरह नहीं जा सकती ।'
देवदास एक ओर चल गया । पार्वती भी रोते-रोते सीधी देवदास के पित्ता के सम्मुख
देवदास . 15
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