अवगुन चित न धरो | Avagun Chit N Dharo
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नाम पर सिफ वर्णमाला या गाय के निबन्ध या छटटी के लिए प्रार्थनापत्र
लिखना ही जानती है. बसन्त ने शादी से पहले ही उसे समज्ञा दियां धा कि
वह उसके दोस्तों के सामने कुछ भी न बोले. सुकर्मा ने आज्ञाकारी बच्चे की
तरह एक भी शब्द नं बोलने का मानो संकल्प ही कर लिया था
सौम ठते आयोजित प्रीतिभोज मेँ बसन्त के दोस्तों को शराब के नशे मेँ
झूमते हुए वह हैरानी से देखती रही. ठण्ड के मौसम में सन्तरे के ठण्डे जूस
को बेमन से घुटकरती रही. जब उसके नन्दोई ने उसे नृत्यं कं लिए उकसाया
तो वह बसन्त का हाथ पकड़कर ञ्यूमने भी लगी. उसकी पतली कमर की
लचक को वहाँ उपस्थित सभी महिलाएँ द्वेषपूर्ण नजर से सराह रही थीं. कौन
जानता था कि सुकर्मा सिर्फ दसवें दर्जे की छात्रा है. उसके सौन्दर्य से
अभिभूत बसन्त ने उसे पूरे मन से स्वीकार किया था.
सुकर्मा को हैरानी थी कि सब महिलाएँ हँस-बोल रही हैं, उसे बोलने की
इजाजत क्यों नहीं है? वह नहीं जानती थी कि उसका ग्रामीण लहजा बसन्त
के लिए मुसीबत खड़ी कर देगा.
उसने दमघोंटू चुप्पी के साथ वह सौंझ विताई ओर कनखियों से बसन्त
से पूछती रही, “सब ठीक तो है न...'?' बसन्त की झपकती आँखें उसे आश्वस्त
करती रही. मन-ही-मन सुकर्मा बसन्त के प्यार की गिरफ्त को महसूस करती
रही. बन्द गले के काले सूट मे बसन्त का रंग ओर खिल रहा था. लम्बे कद
के कारण वह आदमियों की भीड़ में अलग दिख रहा था. सीधे खड घने काले
बाल उसकी लम्बाई को ओर बढ़ा रहे थे. बड़े-बड़े नयन ओर चौडा माथा
उसके व्यक्तित्व को निखार दे रहे थे. मुस्कराने पर वुङ्डी का गड्ढा तनिक
भर जाता ओर गालो मँ गडंदढे उभर आते. उसकी पुरुषोचित ऊर्जा से कौन
स्त्री अप्रभावित रहती. सुकर्मा उस पर गिरती-पडती ओरतों को देखकर
तनिक असहज थी. वह आवाज देकर बसन्त को अपने पास बुलाना चाहती
थी; या यूँ कहो कि इस भीड़ से दूर अकेले कमरे में बसन्त के साथ, सिर्फ
बसन्त के साथ होना चाहती थी. |
अचानक उसको कमरे के कोने में रखा बड़ा-सा आईना दिखाई दिया
वह चाहती थी कि वह बसन्त के साथ आईने के सामने खड़े होकर अपने-
आपको देखे. *मुझे हो क्या गया है?” अपने-आप से पूछो उसने
“दुलहन प्याजी रंग में खिल रही है,” श्रीमती मधुर ने सुकर्मा के नजदीक
आकर कहा
सुकर्मा ने अपनी साड़ी के पल्लू को हाथ में पकड़कर गौर से देखा ओर
मन ही मन दोहराया, प्याजी रंग ? उसने सोचा, शायद पहाड़ पर प्याज का
16 ^ अकेगुन चित न धरो
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