साहित्य सन्देश भाग ८ | Sahitya Sandesh Bhag-8

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sahitya Sandesh Bhag-8 by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हिन्दी फे क्रियापद फा मूल म ---------------~___-~~ ष्वेव ने पोथी परी सिवो ॐ भूल दद श्व-करन्त होति भीर यह रकृत के नुग हो ६1 सत षा. > एप ग्र च गय द्योगाता है श्री “'* से मम्बदधित दोकए “गदा' दो जाता दै । इसी सम्बद्ध क 'क* के रुप भा० को भोग देने से दिन्दी के घपिरोंत भूत कृदत्त गनते हैं जैसे लिखा, पढ़ा वीर्‌ यव द्विया स्वरन्त होती हैतो था व सम्बन्ध 'य' से दोत' दै। यया दिया, पिया, रदी मे भूतन के लिए. लारी कारान्त द्विाशरोंष्यप्रयोगदोताहै। यदन्लपूवं फी भर्‌ षी ग्राम्य भाषा में मिलता है । कपोरदास घादि में इनवा कद प्रयोग मिलना है तथव्रद्मा पून महठारी। + चहुजुग भगवन वांवल चाटी समुभिन पर मोटरी फाटी॥ संकत में हुन मीधतुमोंका भूत दन्त “ल' के स्यान पन, जोडङ्र नगा था । डिस्दी में इसी के अनुकूल बने हुए स्प तुली, फरो, चन्द श्रादि मे मितते हदे क्पयेषटको., सीद, च॑म्द, दन्द । नानाविधि मुनि पूजा कीरै । श्ररटति रि पुनि द्यारिप दीनौ पतमान फालिरु दन्त ~ वर्तमान कालिक कृदन्टों का दिन्दो रूप प्राकत का षीद पस्तु उष्य न! उड गया है: यया प्रात का रुप 'पुच्दस्तो” दिन्दो में दोगप प्पूषना .७६0०1एन१७ पुर्वकालिक-- शुजराती में पूदशालिक में संस्कृत य से उन्नत चातु में लगइर पूर्व घलिर मदन्त बनता दै। परन्तु हिन्दी में इस इ”” का लोप दोगा दै, केवल धा दी पूरदलिरू किया का काम दे जाती हैं यथा बोल, जा “उने उपरे शोल षड हि तुम जादो' वर्दी जा थी राम ने सु्रोव को मित्र बन/या” --परन्दु पूर्ण काल के भाव को झभिव्यक्ति केवल धातु से कमी कभी स्पष्टा पूर्व नदी ती शख पए उड छाय “के” पवा 'बर' चोर सया देठे हैं । बोज के, बोलकर 1 यह्‌ श प्रयया 'कर' के भी बारूव में पूर्वभलिक रूप हैं। जो बेल दै यरी 'कर' दै । ऐसा हुआ करता दै पके भाषा का एक राष्द जय अपने भाव को प्रकट करने में अ्ममर्य होता दै तो उपी ता या दूसरा जोड़ दिया जाता है। पूर्व कलर फिप! के हु दनों निपम के अनुदून हैं । कमी कभी तो उसी एक गतु को दुद्रादने में ही पूर्व लिक करिया बन जती ट! यद उम्र बोल योल वहीं से चला गदा। पुरन दिन्शो मे, किर मी, यद्‌ € ष्टे मिलती दै। उस पूर्वराल सदा हू दारान्त हो होता दे यया--फरि, मारि, इसमें 'कें' लोड़ देने पर भी इ वार बना रद! दै, पयि के, कोर है भादि । उ०४एपठी छुपा 101] 16 एला [तदाल जो स्न सव्ये से्रषतमे ४२१, परर पुनद नापाशं में ता हैं प्रयि दिन्दी मे नदी मलना! ह, धत्र माषा मै अदर्‌य निहतः दै यपा, करन 1 हिन्दी की च्वर्थक संता रना + ते, संतत षे एध्‌ पण्परण जो श्रनः से अन्त दोते हैं, निझने हुआ नया सूप प्रगीत धेत ६ 1 दिन्योमेतो प्रक के कर्मशि पाठ मिलते नहीं, पुरनी दिन्दी में सिर भी बुद्ध एक उदाइरण पाये ज ते हैं प्रकून मे सूयि शश्र भौ ईज्य से यनता है} चुत आर दिद्दारो के एक दो उद'दरणों में यद रूप मिलना है : महिमा जाश जान भयर रयम पूनि नभ प्रमाङ र व कम सम्बन्यमे एण्‌ लिने टै, 1४० ०. वेएडडए1 व्धिएघर6 81७0 285 प२०]%९त १९ ६५१९४ र०९९्‌ ०६ ६४० 88४७१ 8पपिड छश8; छठ 09. ० 00४०१ छह. |€प्रट्टडीप 0०७५ (४6 11281 ® ३८ ०५७० 56 &76 ००६ ६० 5प्]0०8५ ४६६ इ 18 १19715९ {0८ 6 शिण {0६ ण 5 अपर्ण (न &८8, क्ा010)\ 18 प्ञश्व्‌ २ 88८84१६ {०४ ५४९ ६०1९६५०2 0६ 695%1580% इपॉ०5ाघ घर७9 दपप089 घा0१७ डह्मीछु 80 19०




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now