देवपूजा प्रवचन | Dev Pooja Pravachan

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Dev Pooja Pravachan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देवपूजा प्रवचन १६ उद्यम रौर उसकै पमे भरपूर रह भ्रयवा प्रात्मा नानानःदते परिपू है, वीचमे वदी भी वह्‌ खाली नही है, एसा निजस्वस्पफा योध करानेफे लिए कलश टणत यना है । बन्याकों मगल कहा, वह इसलिए कि वह गृहेस्थीते पापोमे रहित निविकार है, तो म्रात्माकी निवि- कारतावी हृष्टान्तता इसमें भी है 1 इसी तरह दही हल्दी श्रादि झातमावे घुम भावीये घोतक होनेसे मगल रूप माने गये हैं । मतलव यह वि सम्पूण मागलिव पदार्थोदी मगलसूभवता भात्माके 'तुभ भावोंवि' प्रतीव रुपमे है । श्रत मागलिप वस्तुभ्रोमि परमेष्ठ प्राय मगलदहै! वे हमारे स्वरुपवे उदुदोधनमे उत्तम साधन रुप हैं । वहा भी है - जो जाणदि भरहत दव्येदि गुणेहिं पउजयतेहिं । सो जाणदि भप्पाण मोहो पलु जादि तम्मलय ॥ भर्यातु जो भात्माफों द्रव्य गुण पर्यायस्पसे जानता है वह प्रपनी परात्माग जानता है, प्रौररेरे क्ानीपे पमलय हो जाते हैं । न परमेष्वीवा ध्यान भर्चन वराना वरना श्रेपस्कर है 1 'प्रहमित्यसर ग्रह्य गाचक परमेष्ठिने । मिद्धस्य सदूनीज सवेत प्रणमाम्पपम्‌ ॥ वर्माहवयिनिमु प्त मोक्षलकष्मनिैनन्म्‌ 1 सम्यक्त्वादिगुणापत मिदचमर नमाम्यत्म्‌ (1 धिद्धममूदफे सदीच भ्रौर परगोषटिदायक अं मग्र प्रणमन्‌ ~ प्रःम--यर्‌ पब्द प्रहमा-परमात्मा, परमेष्ठीवा वाचष है । सिदसमूट प्रपया सिद्धमायोक्षा उत्तम पज ट। प्रत मे भुं मन वचन वाएयदौ सावधानी पूवव नमस्वार परता हू । वट्‌ तिचच मैमारै? सो षन र --मम्पूरं सिद्ध नगवान प्रटवमेनि ररित मोषसश्मीदे नियाम स्यान मप्यष्व णान दन, सुख, षीय प्रादि गुणोमे पिपृ है, उनवौ मे 7मम्दाग वराह । निदधौ षम ममस्वार्‌ पिपिमे मे प्रपना ध्यान समाय चेतनागो भ्नुमूनि तव॒ पटूदाना वाट्य । पूज्य युरुपोक्ी प्राराघनाते हम यह कषाम निवात सेना चाहिये । जिन धात्मार्थोनि झ्पनेपा मिल निया है उने घदसम्बनमे हेमाय काम सरलतासे यना, दयता हर पयार्पोग प्राधरय यर पन उरदे पाघारमभूत स्वमादवौ दष्ट करतो मी निर्मेतना घ्रा सकती है, वयारि निम्‌- सतारोनीता्ममेप्तषै पोर ट्मासमेसेटहोनीटै। ष्मप्रकार यदिप्यचन पः प्रये ता दरव्यम नी मूतापरप्टमि विचारं तो वौ गो पटिति पर्याप ता ननम यानाह, पितु पद्चातु पयायहप्टिगे हटवर द्रव्यहप्टि होती है । प-चान्‌ पादातर सनूरी नो दष्ट षर महासनुप्रतिभास होठा है। तब सहासदुरो भनुभूति विमो पयङा प्रामम्यान रने वारग निशनुद्ूतिस्य होती है । तब वहाँ लिमलतादा दिवास स्दय होता है, उस द सतत मे जो पदां उन समयन पूव दिसो माय फिसिलस्थ कले हैं. यश सिसिल पररसा प्राण हो शातो है ऐसा 'पंचार होता है, भौर एसी निमिनसा हर पदापसें इन रूहरी है |




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