समयसार प्रवचन सहित | Samaysar Parvachan Sahit

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Samaysar Parvachan Sahit by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्ता यना १९. लारपयेतिये अनुसार कुछ शायाण झधिप है । षु रभ दघापं पप्मत नपर पथ्या कुस्गदुस्टम्यामात जिनयपोय मीर छरवहारनयर सरेगे शिफ हो नये स्वाइत शिय हू। वस्तु एस अमिन लौर स्वाधित-पर्तिरपेग पौरणियनता जाननवाय निरचपनप है ठोर अनय भररूप तथा परा फितएगापर परिणिपनतो जाउनवाला ध्यदहारतय है । यरपि धय आवायोन निसवयतय धुद्ध निचः भर धर अगाद्ध निषाद इस श्रबए दा मेरे दिये है। और सवहारनयं सदुमूत असदुभूत उपचरित हनप्रचान धाडिए मेरे झनेक भर शवीवत पिये है । परस्तु बुस्उुस्टस्वासाने इस भोज वस्मे ने पष्कर थिफ उपयूक्त दो भाग स्का विप + भयन्‌ गुणमपि वभिन्नं आत्मा परिणतिके कथनफों स्टॉन दियता तियय मानाद्‌ घौर शूक (मिष्य दांता ब्माङ। परिणति ग्पव्ारनयङां विय पानां हि 1 निषदाय भा-पा्मे काम णय पान पाया लोम माटि विकागङ्गो स्वदत नहीकरला। व पुदूगन्लण्यतै त्वित हा ट यरि ठह मापे वदूगलमै कटै न्पिह्‌) दमा तैर्ह्‌ गु्ण्यात्‌ तथा भागणा भातत विदत्ये उवह स्वभात्‌ नतो हि भव निखयनः उन्टे स्यहारन्टी ङ्गा । एने सदर बालत्माई कटेन) व्यवगरनत्रा विथ हि; निकयय श्वमदहो वियद भरता है विभावा नो । 9 एवम स्ये निमितम्‌ हाना है यत्‌ श्भा ह दग जरते कानार मौरजो शरे पर्दे निपिसय हने रैव गिमत है जने जवम कवर 1 दे विभाव चतिः आरमोे हो परदे निषिसग होते हैं. इसणिये पस्हें बपचितू आ माने स्वादूनि बरन चि पर्वन धावायोन निरणयतपर्ष दाद ओर बगद्ध निचयता दिदस्प स्वीवार रिया ह । पल्नु पुनन महा राज दिमाइरो लटमारा भानना एसीईत नहीं बरते--वें उसे स्यदहारनप्दा ही दिगय सानते हू ॥ निन्षर सौर श्यरार्नपमे भूसायपाही हानस निरचियमयर। भूनाप और अभूता4दाहदा हान से व्यवहार सयक्ता अमवाप बहा है । यहाँ ब्यदहारतयदी अमूतादता निचदनयको अपेरा है। स्वरूप और रुदप्योजनके सगेण ह । उमे शधो श्मताय सावनपें बी आपत्ति श्लिठी है । धीञमूतव-रस्वामीनं भवी गापाङौ टाषम रिया हूँ व्यव गरी हि प्यदेदारिणां स्लच्छमापेय म्लच्छानां परमार्यप्रतिपातवत्वानपरमार्थो'पि ताथप्रयुर्ति तमित्त दर्धितु याम्य एव । तमन्तरेण सु धरोराज्जीवस्य परमाघत मैनदगनात्‌ चसस्थावराणा नम्मन इस निशावमुपगरनेन दिसाश्सायाद भवस्यव य-धस्याभाव । तथा रखता द्रष्य प्रिमा जीवा धध्यमसानों सोचनीय इति रागदपमादेम्यों जीवस्य परमायता भल्दद्यनेन मा तापायर्पा र्य्रहणामावाए भवत्पेश मोदस्यामाव 1 यही भाव तातपवृत्ति में जपगेनाधायने भी रिसलाया है- 'यथप्यर्य य्यवहारनया बह्द्रव्यार यत्य गराभूतायस्तथापि रागानिवहिदरव्यालवनरहित विगृद्धगातना स्वमाचस्वावटबनमहिेस्य परमायस्य प्रतिपादवत्यादर, दगयितूम्‌चितो भव्ति 1 पल पुनेद्यवदटारएा न भषति तना दुदधनिष्चयनयंन व्रसस्थावरजीपा ते भवतीति मत्वा नि शकष मन कृवन्ति जना 1 ततःच पुष्यषूपधरमामाद श्त्येङ दपण त्येव शुद्धनयन रागद्रयमोह्रहित धूवमवर मुस्ता जीदस्तस्प्नाति भत्वा मोगायंमनुष्टान्‌ कौन्ति न फराति तत्स्व मानाभाव दति द्रिवय च दूपमम्‌ । तस्माद्‌ ग्यवहारनपच्याप्यानमुचिने भवतीत्यभिप्राय 1 इन झवतरणारा भाव पट्‌ ६-




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