समयसार प्रवचन सहित | Samaysar Parvachan Sahit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
350
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्ता यना १९.
लारपयेतिये अनुसार कुछ शायाण झधिप है ।
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राज दिमाइरो लटमारा भानना एसीईत नहीं बरते--वें उसे स्यदहारनप्दा ही दिगय सानते हू ॥
निन्षर सौर श्यरार्नपमे भूसायपाही हानस निरचियमयर। भूनाप और अभूता4दाहदा हान से व्यवहार
सयक्ता अमवाप बहा है । यहाँ ब्यदहारतयदी अमूतादता निचदनयको अपेरा है। स्वरूप और रुदप्योजनके
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टाषम रिया हूँ
व्यव गरी हि प्यदेदारिणां स्लच्छमापेय म्लच्छानां परमार्यप्रतिपातवत्वानपरमार्थो'पि
ताथप्रयुर्ति तमित्त दर्धितु याम्य एव । तमन्तरेण सु धरोराज्जीवस्य परमाघत मैनदगनात्
चसस्थावराणा नम्मन इस निशावमुपगरनेन दिसाश्सायाद भवस्यव य-धस्याभाव । तथा रखता
द्रष्य प्रिमा जीवा धध्यमसानों सोचनीय इति रागदपमादेम्यों जीवस्य परमायता भल्दद्यनेन
मा तापायर्पा र्य्रहणामावाए भवत्पेश मोदस्यामाव 1
यही भाव तातपवृत्ति में जपगेनाधायने भी रिसलाया है-
'यथप्यर्य य्यवहारनया बह्द्रव्यार यत्य गराभूतायस्तथापि रागानिवहिदरव्यालवनरहित
विगृद्धगातना स्वमाचस्वावटबनमहिेस्य परमायस्य प्रतिपादवत्यादर, दगयितूम्चितो भव्ति 1
पल पुनेद्यवदटारएा न भषति तना दुदधनिष्चयनयंन व्रसस्थावरजीपा ते भवतीति मत्वा नि शकष
मन कृवन्ति जना 1 ततःच पुष्यषूपधरमामाद श्त्येङ दपण त्येव शुद्धनयन रागद्रयमोह्रहित
धूवमवर मुस्ता जीदस्तस्प्नाति भत्वा मोगायंमनुष्टान् कौन्ति न फराति तत्स्व मानाभाव दति
द्रिवय च दूपमम् । तस्माद् ग्यवहारनपच्याप्यानमुचिने भवतीत्यभिप्राय 1
इन झवतरणारा भाव पट् ६-
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