अमर शहीद बाबू इंद्रचंद सोनावत | Amar Shahid Babu Indrachand Sonavat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दूसरों तरफ स्वामी भक्ति, निष्ठा एवं स्याग को चुलावा था ।
भर रटी कोशति दपर गान
भाट श पर उपर तान्
श्य और रण पा विधान
पितते आर् € आदि अन्त
धौरोशा का ही वपन्त ?
वाम् इन्दचन्द सोनावत ने जैसे सुमद्रा कुमारी घोहान को इन
पंक्तियों को साकार कर दिया हो -- ऐसा संगता है ।
उनके इस उत्कृष्ट ह्याग एवं महान परिचर निर्माण के षीद
उनके पिता वर्म योगी श्री जोगीलाल जी सोमावत की महान देन
है। पुथ में जिन गुणों का ऋमिक विकास हुवा वे पिता के जीवन
में प्रथम चरम उत्रर्प तकः पटच यके हैं । जोगीलाल जो सोनावत
सहनशोत्तता की प्रतिमूर्ति तो हैं ही, महान सेवाभावी एवं परोप-
कारी व्यक्ति हैं । जीवन के भ्रमेक उतार 'घढ़ावों को उन्होंने एक
धमनिष्ठ यवित को तरह सेषं स्वोकार किया है । उनका हुदय
गुणों व सागर है जिनमें सत्य, प्रेम-भाव, उदार-व्यवहार, मृदु-
भाषण, घ्म-निप्ठा, व्तवह-परायपणता, सतिधि-सत्कार, धार्मिक
सहिप्युत्ता, शादि गुण उनके व्यक्तित्व को काफी ऊचा उठाने में
सहापक हुवे हैं ।
वुल-भूपप थी जोगोलाल जी सोनावंत का जन्म सवतत
६४२ के मिंगसर थुक्ता द्वितीया को हुध्ा । श्रपने जन्म दिवस
पे ब्रनुरुप हो वे दूज के चाद की तरह निरन्तर हो विकासमान
होत रहे तथा उन्होंने श्रपूर्थ दक्षता प्राप्त की । नौ वर्ष की छोटी
आयु से श्रपने व्यवसाय में लगने वाले कमंयोगी श्री जोगीलाल जो
ने लगभग ७० वर्पो तके निरन्तर परिवार के पोषण एव गृहस्थ
के संचालन के लिए बिना श्राराम के ब्यावताधिक कार्य किया ।
७६ वर्षों को वय पाने पर पुत्रों की प्रार्थना पर श्रापने सक्यि
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