घुमक्कड़ शास्त्र | Ghummkad Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
167
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अयाती घुमकदनशिशासा ११
क्क धमं ढी दीका देवा ईै- यद मै थवरय करटुया, ॐ यह दीषा
बी ले सकता दै, जिसमें यहुत भारी साधा में दर तरह का साइस
दै-तो उते किकी सात नहीं सुनी घाहिए, न साता के झासू
यदने की बरवाइ करनी चादिए, से दिता के मय भौर उदास होने की,
न भूल से पिवाइ लाई झपनी परनी के रोने-घोने की फिक्र फरणी
शादिए और न किसी तरणी को अ्भागे पति फे कलपने की | यस
शक्रादाय के शब्दों में यदी समसना चघाहिए--' निस्प्रगुण्ये पथि
रिचरतः को परिधिः फो निषेध. श्रौरं मेरे गुर कपौतरात फे वन
कौ अपना पधम्रदर्शक बनाना चाहिए--
“पैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहां ह
जिन्दगी गर छ रदौ चो नौज्वानी फिर फं १
दुनिया मे मालुप-जन्म एक दी थार होता दै धर जवानी भी
केवल एक हो यार श्राती है । साइसी शौर मनस्वी चर्ण हरशियों
को इस श्रयसर से हाथ नहीं धोना चाहिए । कमर बाघ लो भाषी
सुमक्कड़ों ! संसार तुम्ददारे रयागत के लिप बेकरार दै।
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