घुमक्कड़ शास्त्र | Ghummkad Shastra

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Ghummkad Shastra by राहुल संकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अयाती घुमकदनशिशासा ११ क्क धमं ढी दीका देवा ईै- यद मै थवरय करटुया, ॐ यह दीषा बी ले सकता दै, जिसमें यहुत भारी साधा में दर तरह का साइस दै-तो उते किकी सात नहीं सुनी घाहिए, न साता के झासू यदने की बरवाइ करनी चादिए, से दिता के मय भौर उदास होने की, न भूल से पिवाइ लाई झपनी परनी के रोने-घोने की फिक्र फरणी शादिए और न किसी तरणी को अ्भागे पति फे कलपने की | यस शक्रादाय के शब्दों में यदी समसना चघाहिए--' निस्प्रगुण्ये पथि रिचरतः को परिधिः फो निषेध. श्रौरं मेरे गुर कपौतरात फे वन कौ अपना पधम्रदर्शक बनाना चाहिए-- “पैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहां ह जिन्दगी गर छ रदौ चो नौज्वानी फिर फं १ दुनिया मे मालुप-जन्म एक दी थार होता दै धर जवानी भी केवल एक हो यार श्राती है । साइसी शौर मनस्वी चर्ण हरशियों को इस श्रयसर से हाथ नहीं धोना चाहिए । कमर बाघ लो भाषी सुमक्कड़ों ! संसार तुम्ददारे रयागत के लिप बेकरार दै।




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