श्री जैन धर्म शिक्षावली | Shree Jain Dharm Sikshavalika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shree Jain Dharm Sikshavalika by श्री आत्माराम जी - Sri Aatmaram Ji

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आत्माराम जी महाराज - Aatmaram Ji Maharaj

Add Infomation AboutAatmaram Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
८ ^^ जे सुखों का अदुभव करना चाहिए । सधा उत तिद परमात्मा अनैत शक्ति दाले ई उसी प्रक्ार बलवीया- स्तराप कम के चय करने की चट्टा करनी चाहिए ताकि चनन्ते यारि प्रगट से जाय । तथा ऊसे सिद्ध परमात्मा मचल घर सदंदर्शी हैं उसी प्रकार घानादर- सीय झर दर्शनावर्सीय मां के चय करने का पुर्या र्ना चाहिए दमि न यह उक्र गुयप्रामहो नङ) तथा उस सिद्ध परमात्मा झकापिक (शरीर रहित) है उसी प्रकार मन वारी घोर कायके योग को निरेष कर झकायिक दनने की इच्छा करनी चाहिए ! सो इन प्रकार सिटू मेंगल का पाठ करना चाहिए द (ब क्योंकि सांसारिक पदाथ प्रायः प्रथम मगल मान लेने पर भी पीछे घर्मयल रुप दो जाने हैं इसे संयोग में घियोग दसा दुआ है चर में देना बसा दुच्ग चुगली करने में भर चसा हुसा हे साम से नाथ दसा चुझाई कोष में प्रीति का नाश बसा दुर मान मे उपमान बसा हुआ है छत में मिद्रता का नाश चना दुय इ! संनोप में सुम्द वसा शुच्चा है दिया में यश और सदः चार दसा हुझा है धन हें दान भास इस नाश दमा झा डे ग्ध य नदन ९ 111 मोग्दिन दस रद्धा हे इसान्सा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now