विद्याभूषण ग्रन्थ संग्रह सूची | Vdhyabhushan Granth Sangrah Soochi

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Vdhyabhushan Granth Sangrah Soochi  by गोपाल नारायण - Gopal Narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ * } प्राएगी जा मरकं जीवन काव्यसाधना भ्रौर मक्तिपक्ल पर प्रभिनव प्रकाश निप क्रतं हए क्ितनो दौ गवेपगाम्रन्यिर्योको सूपाने्मे परम सहायक शिख होगी 1 विद्यामृपगजी एक समर्थ सूमिकालेखक मो पे । प्रनेकं ग्रयकार प्रभवा सम्पादक उनसे भूमिका लिखवानं उपस्मित दभ्रा करे भे । विस पुस्तक प्र वहु मूमिका सिना स्वीकार कर सेते घे उसमे फेबम उपार निमानेके लिए ही कसम महीं उठाते थे। भपितु वह उस प्रन्पको सम्पारनको विपयवस्दु प्रौर उसके प्राप्त भ्रप्राप्त चर्प्योको प्रभुर मात्रा्मे सगृहीत कर पूणं सूक्सेकिकाके पश्यात्‌ कर्वष्य साधते यैठ्ते भ । यही कारण है कि ये मूमिकाएँ इतनो उक्तृष्ट होती थों कि सम्पादक भ्रयवा ससकका परिभ्रम निखर उठता था ! काशी नागरीप्रचारिंगो सभा द्वारा प्रकाशित प्रजनिधिग्रत्थावसी भौर दाढू कविया मोपास सुन्दरदास भौर रधुनापड्पक्‌ गीवांरो तथा वाफौदास पर दस प्रकारके सम्पादन ध्रौर सेसनकी पृ प्रौढ़ टाप देसी मा सक्ती है । नागरीप्रभारिणी समा काधोने वह भाजीवन सदस्य भौर प्रमुख स्तम्मोर्मिसि भ्म्पतम थे । विधामूपण तो वह थे ही. विनयमूपण भी प्रथम कोटि के थे । उनका भ्रककरित्रिम सारत्प बावगके समास निप्यभुप एवं निसुपघार था । पर्म प्रौर सत्यक प्रति प्रटम निष्ठा सलाघारर्षा पालन स्वाषध्पाग सर्िष्णुता एवं भिषरस्मे प्रादि गुणसमू्नि उन्हे श्रना एकमात्र प्राय मान सिया था भौर वह्‌ स्वय मी इन गुणपुंजोंमे इतने तदाकार हो गये थे कि गुण भौर गुणोका पार्पषकप देख पामा अस्त बपा्ोंकी सन्पिकोस सखाड़ना था । इतने दिस्प मम्य भीर भौर विद्वान्‌ होते हए मौ वद्‌ मानासक्ति भौर भारमविज्ञापनके पकसे कयीरगी 'वादरके समाम भस्पृष्ट थ । 'दांस कबीर बतन सै ध्रोढ़ी भ्मोकोर्ध्यो धर दीनी चदरियाके बहु उपमान भे । एक उदाहरण इस प्रसग मैं उपादेय होगा । बाझी सागरीप्रचारिणी समाते विद्यामूपणजीक्रों उनके ७्श्वें धर्प पर्व पर सम्मामित करना निदिचत किया । समाके लिए ऐसा प्रायोबन करना उचित ही था । मिज परिचितोंको भी यह जान कर हुप होना स्वामादिश कहा जना चाहिए । उमग मरे डाबटर पीताम्बरवत्त अ्स्वालने समयसे कुछ पूव हो सिचा भूपणजीकी पत्र द्वारा इसकी सूचना पहुँचा दी । बस पुराहिवजी का सर निरमभिमान हृदय इस मानमरे प्रायोजनके तुमुसचिन्तनसे बिबनित हो उठा । जहां ऐसे भ्रवसरको प्राप्तिके भि भम्य उत्कट र्वे ह बहा पियामूपयमीकनो हूरक्म्नी प्रधने षेर सिया! भता सरस्वतौके एषान्तमर्िरमे उगमनासीन पुजारीकों यह निप्न केसे दिकर होवा पौर कसे वहे स प्रौपपारिण्ताक पीये प्राता जाबा केता देवा रहता ?




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