महादेवभाई की डायरी भाग २ | Mahadevbhai Ki Dayri Khand-2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
464
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९११९
[पंजाब लौर पुडरात में हुए द्ों के बारे में आंच करने के लिए
मिपुक्त हुंडर-कमेटी के सामने अहमदाबाद ( हुठौसिह की थाड़ी ) में
मॉधीजी की दी हुई इदाइत ]
लिखित इकरार
सस्पाप्नइ की ब्यास्या
थु पिछडे ठीस बपों से में सत्पाप्रइ का उपदेश सौर पाढन करता
था रद हूँ । सस्पाय के सिदांतों के नि स्वस्य को मी आयाम चानता हूँ,
ससका पीरे-पीरे बिकात दुस्टा है।
सचरी भर दद्षिजी प्ुष के बीच बितना अन्तर दे, उतना दी तत्यां-
प्रह शोर पैसिष रेजिर्रेंस' के बीच हे । 'पिठिय रेडिस्टेंस' कम बोर यगा
का इपिपार हे । सपना उद्देश्य पूरा करमे के मपि रीरि भढ कमर
हेने या एंगे करमे की उतमें रुकाबर नहीं । परम्तु सस्वाप्राइ हो श्पस्यंत
चभ्स म्पक्तियीं बम एब्म दे और उततें किसी मी प्र्मर का दंगा मचाने
शी कलना त नहीं दो लड़ठी ।
दधिण सफ्रीका मैं पूरे आठ बर्प तक दिस्तुस्तानिर्यों ने बिस बढ का
मबीग किया था उस बल का नाम मैंने हल समय “लस्याप्रद रला था |
उवी मरखे ध विरि यङो वपा दिन मद्य त धपैरसिष रथिरः
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म्द निष्द्यपा।
इस सम्द च्म मूढ सयं हत्य का मापड रै! यथेत् धप क्छ रे ।
मन चे धवेमषढ मवा माप्ममड मी ष्ठ र | टेर परू ही शत्य
शप्र समल करके मैंने देख सिम प्य कि साय के पाठन में शामनेबाति
पान प इमस्स ऋरमे का इसदा दो दी न हमद, परव्तु उत्में भीरज
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