ग्रामशाला ग्रामज्ञान | Gramshala Gramgyan

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Gramshala Gramgyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रामशाक्षा प्रामज्ञाय इसे बनायें इसे सये बढ़िया पढ़िपा घास उगायें | हन पर रोज खरहरा दोगा सेवा का प्रत मेरा दोगा। गठश्ाठा को साफ फरूंगा मू धृष नरि मार करूंगा । रोज करूंगा रोज करूंगा बड़े सबरे मोर करंगा। ग्या मां इख से सोयेगी खूब शप्र मह दुमा एरगी मेरी पढ़ाई खूब 'चछेगी । मेरी फुलवाढ़ी खूब भड़गी । इम सब रोख नदहात र गपा भी रोज नहानी होगी । इम समर रा्ामद्याहें तो ह मां गहया-रानी दगी। गठ माषा सताप इने पुन्य शो प्राप श्नेय। स अन 9




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