ज्ञानास्वभाव और ज्ञेयस्वभाव | Gyanasvabhav Aur Gyeyasvabhav

Gyanasvabhav Aur Gyeyasvabhav by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ १४१ अजीव भीं प्रकतीपना १४२ ८ निमित्तकतौतोदहैन ? १४२ ज्ञाता कां कार्य १४४ ५अकार्यैकारणएशक्ति) शौर पयौय मै उसका परिणमन १४५ आमा पर का उत्पादक नीं १४६ सव लोग मने तो सच्चा यद्‌ मान्यता मूठ है १४७ गोशाला का सत्त ? १४८ कती-कमं का श्न्य से निरपेक्षपना १४८ सर्वत्र उपादान का ही बल १४० निमित्त चिना १५१ इस उपदेश का तात्पर्यं ओर फल १५२ अधिकार का नाम १५३ (क्रमबद्ध ओर कर्मवधः १५४ ज्ञायक शौर क्रमबद्ध का निणेय एकसाथ १५५ यदह बात किते परिणमित होती है ?- १५६ धमे का पुरुषार्थे १५७ क्रमवद्ध का निणेय 'और फल १५८ यह है संतों का दाद १४६ जो यद्द बात समभ ले तो उसकी दृष्टि बदल जाती है १६० ज्ञायकस्वभाव की दृष्टि की ही मुख्यता १६१ जेसा वस्तुस्वरूप, वैसा ही ज्ञान, वैसी ही वाणी १६२ स्वच्छदी के मत का मेल (१) १६३ स्वच्छंदी के मन का मैल (२) पष्ट > ४ (३) १६५ सम्यक्त्व की अदुमुत दशा ! १९६ ज्ञातापने से च्युत होकर श्रज्ञानी कती होता है १६७ सम्यक श्रद्धा -ज्ञान कच होते ड १




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