सुधारणा और प्रगति | Sudharana Or Pragati

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Sudharana Or Pragati by श्री सूरजमल जैन - Shri Surajmal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विस्तृत अनुक्रमणिका नन्त प्रथम परिच्छेद रमाण चिकित्सा | प्रकरण पहला--इतिहास। अुधारणाकि तत्व जाननेके प्रमाण की आवश्यकता-प्रमाण शब्दका अर्थ-इति- हवस प्रमाण-इतिहासका वदादरण इृषटिसे मदत्व-गतकाऊका विदंगृष्टितते अवलो- कन-इतिहासवादके दो पक्ष-पदिछा वर्णनात्मक विवेचनात्मक-दोनोमेंही ध्येयकी खुननेकी सामर्थ्य नहीं दै-ध्येय दो प्रकार के होते हैं, व्यक्तिके व समा- जके-तत्कालीन परिस्थितिके श्ञानकी आवश्यकता-क्या विवेचनात्मक पक्ष परि- स्थिति का प्रथकरण करके ऐतिहासिक सिद्धान्त स्थापित करता है “-नहीं परि- स्थितिके वर्ह षतैमामकाङक्षा भ्रान आवश्यक दै-स्पेन्सरका उत्कान्तितत्व (इतिहासा ख्य काय वर्तमानकाले सिद्धान्तोके सवधम ठदाद्रण चय, स्थित करना है। प्रकरण दूसरा-आधिमौतिकशासर । आधिभीतिक प्रमाणपक्ष-आसेपकथन-पंचभौतिक सष्टि परका स्वामित्व दी सुधारणा है--इस बिचारपद्धतिका इतिहास--लाढ बेकन--मूयोदर्नकरौ उपपत्ति >-उलकान्तिबाद--इस श्रमाणका परीक्षण--उससे भन, बुद्धिका खोज रूगने हब अदकक्‍्यता---यह प्रमाण प्राणोंका उद्गम समझनेमें असमर्थ है--सर ओछिल््र मत--स्युडविग बुइनेर-- अ्रकृतिके विषयमें एक नहें कल्पना--व्युटकी उपपत्ति“-इस विषय पर आर्यविचारपरंपरा--सुष्टिकी भटना---परमाशु--- संबंघ---जाणिवालका शास्रकी कमी--उससे मनके करृत्यकी दिशा समझें नहीं भाती--सन और मस्तिष्कका कार्यकारणसबंध नहीं है--इससे नवीन उपपत्तिकी आवदनकता




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