अष्टपाहुड | Ashtpahud

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Ashtpahud  by पारसदस जैन - Parasdas Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २) सूत्र पाहुढ़ गाथा-- झरहंतमासियत्थं गणघरदेवेहिं गंथियं सम्मं । स॒त्तस्थमम्गणत्थं सवणा साहंति परमत्त्थं ॥ १॥ छाया-- अहंदूभाषिताथ गणधरदेवै: प्रथित॑ सम्यक__। सूत्रायेमागेणारथं श्रमणा: साधयन्ति परमाथमू !। १॥! अथे--अजो अरहन्त देव के द्वारा कहा गया है; गणधरादि देवों से भलीभांति रथा गया दे और सूत्र का अर्थ जानना ही जिसका प्रयोजन है; ऐसे सूत्र के द्वारा मुनि मोक्ष का साधन करते हैं ॥ १ ॥ गाथा-- सुत्तम्मि ज॑ सुदिट्ठं छाइरियपरंपरेश मम्गेण । रणङण दुविष्ट सुत्तं बटइ सिवमम्ग जो भव्वो ॥ २॥ छाया-- सूत्रे यत्‌ सुरृष्टं भाचायेपरम्परेण मारण । ज्ञारव। द्विविधं सूत्र वतेते शिवमार्ग यः भन्यः ।॥ २ ॥ झथे-सर्वज्ञमाषित द्वादशांग सूत्र में छाचायों की परम्परा से जो कुछ बताया गया है उस शब्द और अथेरूप दो प्रकार के सूत्र को जानकर जो मोश्माम मे लगता है बद्दी भव्य जीव दे ॥ २॥




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