ऋग्वैदिक भूगोल | Rigvaidik Bhoogol

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) के साथ ही इसको भौगोलिक देंशाओं का ऋग्वेद के संबंधित स्थलों में गचिलेंग से सदी मिलान एवं मुल्याकन हो सकेगा । वहस्वेद का रखसा-काल--यद्यपि ऋग्वेद के रचता-काल के निंक्पण में प्रामाणिक अन्तः एवं बहिः्साइ्य का अभाव प्राचीन वैदिक प्रन्यों में तिथि एवं संबत्सर के उल्लेख का अभाव, वेदों को अपौरषेय मानना, वेदों के उल्लेखयुक्त परवर्ती वैदिक साहित्य मे तिथियों का अत्यन्त अनिष्चित होना, वेदों में सन्निहित ऐतिहासिक तथ्यीं को मानना यान मानना, ज्योतिष सम्बन्धी भौर्गभिक एवं भौगोलिक उल्लेखों की अस्पष्टता, पाश्चात्य एवं पौरस्त्य विद्रानों कै दृष्टिकोण में वैषम्य मादि कुर ठेसी मूलभूत कठिनाय है, जिनसे किसी सुनिश्चित मत पर सरलतापूर्वक नहीं पहुँचा जा सकता है, तथापि पाष्वात्य एवं भारतीय विदानो के ऋग्वेद के रचनाकाल विषयक अनुसन्धानपूर्ण मतों पर संक्षेप में पुनर्विचार करते हुए ऋग्वैदिक प्रमाणीं के आधार पर इस सम्बन्ध में नवीन प्रकाश डाला जा रहा है । पाश्चात्य विद्वानों का मत प्रो० सैक्समुलर--प्रो० मैक्समुलर के मतानुसार गौतम बुद्ध ने वेदों के अस्तित्व को स्वीकार किया था तथा मूतर एवं वेदाङ्गं साहित्य का प्रणयन गौतम बुद्ध के जीबनकाल (५०० ई०्पू०) में ही हुभा था । उन्होने समस्त वैदिक साहित्य को चार भागों में विभाजित करते हुए प्रत्येक काल की विचारधारा के उदय होने और परिमाजित होकर लिपिबद्ध होने के लिए २०० वर्ष का समय निर्धारित करते हुए निम्नलिखित रूप में ऋग्वेद के रचनाकाल का निरूपण प्रस्तुत किया है' :-- (१) छत्दकाल एवं स्फुट ऋचाओं की रचनाएँ-- १२०५ ई०पू० से १००० ई०पू० || (२) मंत्र काल--(वैदिक संहिताओं की रचना) पृ००० ई०पु० से ८०० ई०पू० | (३) ब्राह्मणकाल- (ब्राह्मण ग्रन्थो की रना) (५०० ई०पू० से ६०० ई०पू०)) 1 हि). सूल काल--(श्रौत एवं गुष्यसूत्रों की रचना) ८६५० ई०्पु० से ४०० ई०पू० 1 + -~------ ~ -~--~---- १. ए हिस्ट्री ऑफ ऐन्शियंट संस्कृत लिट्रेचर, एफ० मैक्समूलर, एडिटेड बाइ--ढॉ० एष० एन° शास्ती, वाराणसी, १८६०, ४५२३-५२५ ।




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