रत्नकरण्डश्रावकाचार | Ratnakarandshravakachar

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Ratnakarandshravakachar by आचार्य समन्तभद्र - Acharya Samantbhadra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाठकोंसे अनुरोध । [1 १- यद यग्न्त धावकायार श्रन्थ आपके समक्ष बिराञअपरान ह । समे दृष्टिदोष, संशोधनक्ो भूक, प्रेसकी भसावधानी पर्वं भक्कागता मादि कारणोसे मशुद्धि रह जाना सम्भव है भतपव विह पाठक शुद कर पद्‌ पद वे मौर सुनावे । २-प्रभाचन्द्रोय संस्कृत टोक', नियक्ति और रिप्पणोके पो ब वर्णो को शुदता--मशुदता परस्पर ( पको दूखरेसे ) ज्ञान कर शुद्धताकों श्रदण कर वाक्याथ करें । ३ - ओ पष, वाक्व तथा नका अथं अपने अनि हुए अ्थेसे विलक्षण अचे उत्को सस्त श्रोप्रभाचश््रीय रोकासे शोत करना | फिर भो सन्तोष नहीं होवे तो अन्य भाषं संख्छत-प्राङृत भ्रन्धोसे पिन्ाकर भविरोधो बमनेका प्रयज करे । आशा है श्रतार्थों, शिक्षक भीर विद्यार्थीगण दोषप्राहो न बनेगे किन्तु हंसके सपान दोष विवेको गुणग्राहकः वनेगे । यदि धार्मिक बन्धुवर्गो ने इस भ्रन्धसे लोम उठाया तो अपना प्रयास सफल समझे गे । --प्रकाशक




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