श्री सिद्धक्षेत्र | Shri Siddhakshetra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीसम्मेदशिखर- विधान | ९ .; ॐ ही श्रीसमेदशिखरसिदकेत्रे संझुलकूदसे श्रश्रयां्नाथाभिनेन्द्ादि, सुनि छयानवे कोड़ाकोड़धी छयानवे कोटि छथानवे लाख नो हजार पांचसे व्याठीस सिदधपद प्रततिभ्यः अरं निरवपामीति स्वाहा ॥१०॥ रागादि इस्त्यजं मछ इरन,जिन वचन खलिल समान श्रीविमल > करत,भविक्रजन विमलसौख्यनिधान ई॥ इस क्षेज्रको दी विमलं कीनी, थहतिं हिव जायकं ॥ तिदि झोलरा ज प्रदास्तकों, यै नमोः मन वच कायक ॥ ॐ द्री श्रीविमलनाथतीश्रकरादि निर्वाणमूमये पुप्थां रिं क्षिपेत्‌ । विमलं जिनेश्वर सक्थ, खुनि असंख्य इस अवनिर्ते। पाथो अविचल क्स, अधे जज ताही निमित्त ॥ ॐ दीं श्रीसम्भेदशिखरस्िढकषत्रके सुवीर ङुलच्र्छे ध्रीविमङनाथनिनेन्रादि सनि पत्तर कोटि सात लाख छह हजार सातौ. व्याठीस सिदधपद प्रतिम्बः अर्धं न° ॥११॥ ` जिनके सु सगुन अनंत कथ,गनधर हत नादे अत ह्‌। खु अनत क्षंखत दुःख नादान, श्रीअ्नत महंत इं ॥ सुअनेतघाम लद्दों जहांतें, अचल अमल खुधिर मए।ति० ॐ हीं श्रीभर्नठनाथतीथकरादि निवाणमूमवे पुष्पाजलिं क्षिपेत्‌ । झांत करो. ससार, सादि अनंत कियो शुकति। ते पृ जगतार, ख अनन्त दातार छल ॥ 5 ट्री श्रीसम्मेदशिखरसिदक्षेत्रके स्वयं शूट से श्रीअनन्त- १ कटिनतास नष्ट द्ोनेवाछे 1




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