श्री सिद्धक्षेत्र | Shri Siddhakshetra
श्रेणी : काव्य / Poetry, जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीसम्मेदशिखर- विधान | ९
.; ॐ ही श्रीसमेदशिखरसिदकेत्रे संझुलकूदसे
श्रश्रयां्नाथाभिनेन्द्ादि, सुनि छयानवे कोड़ाकोड़धी छयानवे
कोटि छथानवे लाख नो हजार पांचसे व्याठीस सिदधपद प्रततिभ्यः
अरं निरवपामीति स्वाहा ॥१०॥
रागादि इस्त्यजं मछ इरन,जिन वचन खलिल समान
श्रीविमल > करत,भविक्रजन विमलसौख्यनिधान ई॥
इस क्षेज्रको दी विमलं कीनी, थहतिं हिव जायकं ॥
तिदि झोलरा ज प्रदास्तकों, यै नमोः मन वच कायक ॥
ॐ द्री श्रीविमलनाथतीश्रकरादि निर्वाणमूमये पुप्थां रिं क्षिपेत् ।
विमलं जिनेश्वर सक्थ, खुनि असंख्य इस अवनिर्ते।
पाथो अविचल क्स, अधे जज ताही निमित्त ॥
ॐ दीं श्रीसम्भेदशिखरस्िढकषत्रके सुवीर ङुलच्र्छे
ध्रीविमङनाथनिनेन्रादि सनि पत्तर कोटि सात लाख छह हजार
सातौ. व्याठीस सिदधपद प्रतिम्बः अर्धं न° ॥११॥
` जिनके सु सगुन अनंत कथ,गनधर हत नादे अत ह्।
खु अनत क्षंखत दुःख नादान, श्रीअ्नत महंत इं ॥
सुअनेतघाम लद्दों जहांतें, अचल अमल खुधिर मए।ति०
ॐ हीं श्रीभर्नठनाथतीथकरादि निवाणमूमवे पुष्पाजलिं क्षिपेत् ।
झांत करो. ससार, सादि अनंत कियो शुकति।
ते पृ जगतार, ख अनन्त दातार छल ॥
5 ट्री श्रीसम्मेदशिखरसिदक्षेत्रके स्वयं शूट से श्रीअनन्त-
१ कटिनतास नष्ट द्ोनेवाछे 1
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