गोकुल भवन (श्री कृष्ण लीला ) | Gokul Bhavan (shree krishna Leela)
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
72
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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वसुदेव-( हय म शर्थ मार करें) सी श कार को
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( तलवार राय से डाल करे )
शेर- लो कटार हाथ में यद जान तक करवान है।
मंगलो थव कृश-राजा दिल में जो अरमान है ॥।
कंश-शेर--देवको,करा परम दिल लंगरहो है रत दिन। ~,
हो प्रसृती को खशी घर पर हमारे रात दिन ॥ |;
चाता--शरी मसेन 'मुकफोः देवकी से रस्यन्त भेम दै । इसलिये उसकी
प्रसूती की खशी सद्त्र मर मन्द्रिमं हश्रा फरे यही सेवक की
याचनयहै। “`
वसुदेवः---रानैन येह कंया गोगो । लो शु्॑नुर हे पै. षचनदेत ह ।
कृन्रा धन्य है 1 पंन्य है | भी अ्चरोनि आपि -परन्य दैः सेवको
शीट दो देन सेसिक्स दर न हे स
वसदेव--बेठिये २ थभी कया जल्दी है। ' ^ 27.
कन्श-( हाथ जोड़कर ) श्रीमान मुकं एकं शय्य वशं नीना
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वदयुदेष-( मोन षारण करते है )
(कन्श.का प्रस्थान). बलदेव जी का पवेश) 7
वृज्लदेषजी-रावधान । सावधान ।, पिता. जी सावषान । र
27८ ५४ ~
वस॒देवजी-ग्य क्या है । 1
वृलदेवजी- कंश को मसूती के घनं न, दना । कः
वसदेवजी-- कचन । वचनः दे चुकी हू
वंसंदेवजी कौ गाना
पिताजी हवा सहा अन्ध ॥ 1; 1“ ¦ 2. ` 5.2.
देते वचन न सोचा समभा, एीनी.जुरा ना. देर ॥ प्रिता जी० ॥ |
साफ साफ. भतिःमक्तक कह गये करी. ना दरा फरा | पिता० ॥
दष के सत कश श्रा्दिक का मार मार कर ढर ॥ पिता०
६.
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