संक्षिप्त जैन इतिहास | Sankshipt Jain Itihas

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Sankshipt Jain Itihas by साहित्याचार्य पंडित विश्वेश्वरनाथ रेऊ-saahityaacharya pandit vishveshvarnaath reu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१७) जमीसो ०--जनेठ माफ दी मीथिक सोसाइटी-वेंगलोर | जराएसा ०--जनरल भ्राफ दी गायल ऐसिया टिक सोतायटी-लंदन।- जका०=ः जन कानून 2 (श्री० चम्पततराय जेन बिद्यावा० विजनीर १९२८ )। जेग०~‹ जेन गजट ” स्प्रेजी ( मद्रास ) | जप्र०--जनघर्म प्रकाश त्र ° जीतव्प्रप्तादजी (तरिजनौर १९२७) !' जस्तू०--जैनस्तूप एण्ड अदर एण्टीकटीज आफ मधुरा-हिमथ | जसास०=जेन साहित्य संदोवकः मु० जिनविजयजी (प्रना ) | जेमा ०=जन सिद्धान्त भास्कर श्री पद्मगज जिन (कस्कत्ता) । जनि से०= जेन शिरुटेख संग्रह ° हीराखार नेन (माणि- कचन्द्र ग्रन्थमाला | जेहि०=जैन हितैषी सें० पे० नाथूरामजी व प० जुगठकिओ- रजी ( वम्ब्ई ) | जिसू० (8 गजेन सूत्राज (3. छ €€ा1९5, प्रण. ऊद & -1.*)}. ठोस ०ठोडसा० कूत राजत्थानका इतिहास (वेद्वटेदवर्‌ प्रेष) । डिजेवा०=८ ए डिक्शनरी फ जन वायोग्रकी ° श्री उमयवर्सिह टॉक ( आग )} तक्ष०='ए गाइड द तक्षनिा -सर जीन मारदर (१९१८) । तत्वाथ०-तत्वार्थाधिगम्‌ सूत्र श्री उमस्वाति 8. 8. ¶. ए०1. तिप०=‹ तिछोयव पण्णत्ति ” श्री यति इषभाचायै (जेन हितेषी मा० १३ चक १२)। दिजें०--'दि० जैन मासिक पत्र सं° श्री. मृढचन्ट किसनदास कापड़िया ( सूरत ) ।




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