प्राचीन जैन इतिहास दूसरा भाग | Pracheen Jain Etihas Volume - Ii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७... « दूसरा भाग ; पाठ ४. प्रतिनारायण मधुसदन, और बलदेव खुप्रभ नारायण पुरषोत्तम । ( चौथे नारायण, प्रतिनारायण यर्‌ बलम) (१) भगवान्‌ अर्नेततनाथ स्वामीके तीथकाट्मं कायी कय मधुभुदन प्रतिनारायण हआ जीर सुप्रम वद्देव हुए च पुर्गोत्तम नारायण हए । (९) बलदेवका चाम सुप्रम था ओर नारायणका नाम पुरुषोत्तम था । (२) द्वारिकाकि राजा सोमप्रभकी महारानी जयेवितिसे बल- भद्र-सुप्रम उत्पन्न हुए और महारानी सीतासे नारायण-पुरुपोत्त- मका नन्म हुआ । (४) नारायणकी आयु तीस लाख वर्पकी थी और झरीर पचास धनुष उचा था। (५९) नारायण सात रत्नोके और बलभद्र चार रत्नोंके स्वामी ये । प्रतिनाशयणने चक्ररत्नं तिद्ध क्रिया था इन तीना विदोष सेपत्तिका वर्णन परिशिष्ट क्र' जानना चाहिय । १) नारायणकी सोलह दनार और प्रतिनारायणकी आठ हजार रानियां थीं। १ एक जग उत्तरपुगाणवे द्वारिकः राजा सीर दृयरी ऊन खद्भपुर्के राजा लिखा टू 1 दशा नाम अनि ऋध कर उत्रपसणकारत ही नुदः दम्ब है 1




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