प्राचीन जैन इतिहास दूसरा भाग | Pracheen Jain Etihas Volume - Ii
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री सूरजमल जैन - Shri Surajmal Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७... « दूसरा भाग ;
पाठ ४.
प्रतिनारायण मधुसदन, और बलदेव खुप्रभ
नारायण पुरषोत्तम ।
( चौथे नारायण, प्रतिनारायण यर् बलम)
(१) भगवान् अर्नेततनाथ स्वामीके तीथकाट्मं कायी कय
मधुभुदन प्रतिनारायण हआ जीर सुप्रम वद्देव हुए च पुर्गोत्तम
नारायण हए ।
(९) बलदेवका चाम सुप्रम था ओर नारायणका नाम
पुरुषोत्तम था ।
(२) द्वारिकाकि राजा सोमप्रभकी महारानी जयेवितिसे बल-
भद्र-सुप्रम उत्पन्न हुए और महारानी सीतासे नारायण-पुरुपोत्त-
मका नन्म हुआ ।
(४) नारायणकी आयु तीस लाख वर्पकी थी और झरीर
पचास धनुष उचा था।
(५९) नारायण सात रत्नोके और बलभद्र चार रत्नोंके स्वामी
ये । प्रतिनाशयणने चक्ररत्नं तिद्ध क्रिया था इन तीना
विदोष सेपत्तिका वर्णन परिशिष्ट क्र' जानना चाहिय ।
१) नारायणकी सोलह दनार और प्रतिनारायणकी आठ
हजार रानियां थीं।
१ एक जग उत्तरपुगाणवे द्वारिकः राजा सीर दृयरी ऊन
खद्भपुर्के राजा लिखा टू 1
दशा नाम अनि ऋध कर उत्रपसणकारत ही नुदः
दम्ब है 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...