कर्त्तव्य कौमुदी प्रथम भाग | Karttavya Kaumudi Part 1
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कर्तव्य कौन पालन कर पः है?
४
कतेच्येषु निरन्तरं परवलापेक्षां न ङ्षेन्ति ये |
धीरास्ते भयशोकदैन्यरहिताः कतेव्यपारङ्गमाः ॥
ये सर्मन्यवहारसाधनविधावन्याश्रयापेक्निण-
स्ते दीनाः पञुबत्सदापरवशाः कर माः स्युः कथम् ॥
दाक्ति सहित ले कार्य हाथ में; मुँद न कभी पर का तकते।
डोक, दीनता, भय हर वह ही, वीर ! कायं पूरा करते ॥
जो निज पर व्यवहार कायं में, पर श्राञ्चा पर अवलंवित ।
पराधीन वे मानव जग मे, साध न सकते कोई हित ॥
दवितीय परिच्छेद
कतंन्य के मेद् शौर अधिकारीगण ।
५५
शि्तानौतिपरार्थशान्तिफलिका नृणां चतस्रो दशा-
स्तद्धेदेन तंथाविधाभिधमिदं कृत्यं चतुधां मतम् ॥
प्राधान्य॑ व्यपदेशकारणमिति प्ाहुस्तत: परिडिताः ।
एकत्रापरसम्भवों यदि भवेत्त क्षतिः कापि नो ॥
रिक्ताः नीति, परां शान्ति, यह हैं चारों कतेव्य विधान ।
अपनी वय अनुसार यथाविधि, करना यह कतेव्य महान ॥
इनमें भी उपदेदा मुख्य है, कहते इसकों झुभ घुधजन |
चारो साधन में न हानि हो, है यह ही कतंब्य कथन ॥
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