कर्त्तव्य कौमुदी प्रथम भाग | Karttavya Kaumudi Part 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Karttavya Kaumudi Part 1 by मूलचन्दजी वत्सल - Mulchandji Vatsal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मूलचन्दजी वत्सल - Mulchandji Vatsal

Add Infomation AboutMulchandji Vatsal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ है | कर्तव्य कौन पालन कर पः है? ४ कतेच्येषु निरन्तरं परवलापेक्षां न ङ्षेन्ति ये | धीरास्ते भयशोकदैन्यरहिताः कतेव्यपारङ्गमाः ॥ ये सर्मन्यवहारसाधनविधावन्याश्रयापेक्निण- स्ते दीनाः पञुबत्सदापरवशाः कर माः स्युः कथम्‌ ॥ दाक्ति सहित ले कार्य हाथ में; मुँद न कभी पर का तकते। डोक, दीनता, भय हर वह ही, वीर ! कायं पूरा करते ॥ जो निज पर व्यवहार कायं में, पर श्राञ्चा पर अवलंवित । पराधीन वे मानव जग मे, साध न सकते कोई हित ॥ दवितीय परिच्छेद कतंन्य के मेद्‌ शौर अधिकारीगण । ५५ शि्तानौतिपरार्थशान्तिफलिका नृणां चतस्रो दशा- स्तद्धेदेन तंथाविधाभिधमिदं कृत्यं चतुधां मतम्‌ ॥ प्राधान्य॑ व्यपदेशकारणमिति प्ाहुस्तत: परिडिताः । एकत्रापरसम्भवों यदि भवेत्त क्षतिः कापि नो ॥ रिक्ताः नीति, परां शान्ति, यह हैं चारों कतेव्य विधान । अपनी वय अनुसार यथाविधि, करना यह कतेव्य महान ॥ इनमें भी उपदेदा मुख्य है, कहते इसकों झुभ घुधजन | चारो साधन में न हानि हो, है यह ही कतंब्य कथन ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now