सामायिक प्रतिकारमनानदी पाठ | Samayik Pratikarmanadi Path

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Samayik Pratikarmanadi Path by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) ( ५ ) पकेन्द्रियाया. यदि देव ! देहिनः भ्रप्नादतः सच्चरता इतस्ततः ) त्ता चिर्थिन्ना भिलिता निपीडितास्तदस्तु मिथ्या दुरनुष्ठितं तदा ॥ भावाथै-दे देव ! यदि मेरे द्वारा इधर उधर घूमने फिरने चाले पकेन्द्री आदि (जस स्थाचर) जीवों की प्रमादं से विराधना इुई हो, वे पीड़ित किये गये हों, मिलायें गये हो, पूथक्‌ किये गये हो, तो सब डुष्कृत्य मिथ्या होवे ॥ ५ ॥ इक बे ते चौ झरय पंचेन्द्रिय जीव असेनी सेनी जान । यलसे-फिरते मम प्रमादवश कए लही या सुरं निदान ,॥। सो सच डुष्छत मिथ्या दोवें तच प्रसाद दे दयानिधान । सव जिय त्तमा कर मम उपर मैंने भी की क्षमा प्रदान ॥। ( ६ ) ' ` विध्ठक्तिमार्भभरतिद्धत्तवर्तिना, मया कपायात्तवशेन दुर्धिया ¦ पवारिन्रथद्धर्थ दकारि लेपनं, तदस्तु मिथ्या मम दुष्डृतं भभो ! ॥ भावार्थ--हे प्रभो! सन्मागं ( मेोक्त-मागं ) से विपरीत जो मैंने इन्द्रियों के विषय तथा कषाय के वश में होकर शुद्ध चारित्र का लोप कर'दिया है, सो सब दुष्छत्य मेरे मिथ्या दोचं ॥ ६॥ | परम शद्ध स्वाधीन निराकुल खुखस्वरूप निज पद मलान । सम्यग्दर्शन क्ञान चरण शिव-मग . पेखो नदिं मै अज्ञान ॥ प्रस पुनि विषय कषायन वश हो किट घोर डुष्डत्य महान । सो सब मिथ्या दोवें . हे प्रभु .पाऊः मोकच्तमागे खुखदान ।! ७ ) , विनिन्दनालाचनगहंणेरहं सनोवचःकायकपप्रायनिमितम्‌ । 'निहन्सि पाप भवदुःखकारणं भिपग्विपे मंत्रगुणेरिवाखिलस्‌ !!




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