जैन भजन तरंगनी | Jain Bhajan Tarangnee
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
38
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जैन भजन तररंगनी १७
२२
रानो जिजियाद्ुन्दरी का राजा क्रो राज्य घौर प्रजा को रक्षा के लिये
विषय भोग को झड़ने के लिये राजनीति का उपदेश करना |
(चाल ) सब्र पड़े जाएगा एक दिन चुज़युले नाशाद का ।
ग्रटनं कररो राजनीति के जस पैम को ।
छोड़ दो परजा की खातिर ऐश को आराम को । १ ।
है प्रजा के दुखमें हुख आराम में आगम है ॥
छोड दो देखो पती इनिया के छे नाम को । २।
धार्मिक राजा हे वह ओर् धमं का अवतार है ॥
धर्म पर चछता हे जो तजकर विपय को काम को 1 ३ ।
अपने सुख के कारणे छोड़ो नहीं इस राज को ॥
सोच तों छीजे: जय इस काम के अंजामको ॥ ४ ॥
२३
रानी का रौजा कफो सममन)
(चाश ) खुदा या कनी शंसन म यह तानं वाने षदे एवद्]
जगत मे सुखकां उपाय क्या है जय तो सौचो विंचार करके॥
किसी ने संञआज तकन पायौ धगम को दिलमे विसार करके १
पिपों मे कसान दै सरक जो फायदा है तो टे परम मे॥
अगर न॑ मानों तो आजंमालों भरम का चश्मा उतार करके २॥
पूर्मं काम ओर मोक्ष चारा यही ते खक निशा वताए् ॥
इनही की पुरुपार्य कह रहे. हैं ऋपी सुनी जने एकार करके ३0
सुखोंका करता यहीं घरम है दुखों का दर्ता यहीं धर्म हैं ।
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