जयपुर कहानिया | Jaipur (khaniya) Tatvacharcha Shanka-samadhan 1 Se 5 Tak Volume-1

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Jaipur (khaniya) Tatvacharcha Shanka-samadhan 1 Se 5 Tak Volume-1 by वंशीधर व्याकरणाचार्य - Vanshidhar Vyakaranacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकाद्यक्तीय चक्तव्य १३ © [| भचा्यकट्प प० श्री टोडरमल स्मारक भवनका मनोरमं रूप मै यह तो पहले ही बतला आया हूँ कि पूज्य श्री कानजों स्वामाकी सत्प्रेरणासे जयपुरमें ही आचार्य- कल्प प० श्री टोडरमलकी स्मृत्ति स्वरूप स्मारक बनानेका निणंय हुआ था जो अब उनकी स्मृतिकें अनुरूप विशालरूपमे निर्मित हो चुका है । जयपुरमें जिस स्थान पर इसका निर्माण टरा हं वह शिक्षाका केन्द्र है । जयपुर राजस्थानका विश्वविद्यालय और दुसरो शिक्षा सस्थाओंके सल्निकट यह्‌ स्मारके भवनं मति भाकर्पंक अयने गा एक हैं। इसके मध्य लगभग ११० पुट रम्बा गौर प४ फुट चौडा एक विशार हाल है! सामनेकी ओर एक तरफ सुन्दर चेत्यालय और दूमरो तरफ स्वाध्यायद्यालाका निर्माण किया गया है। तथा दाएं-वाएँ दोनो ओर स्नातकोके मिवास् योग्य कमरे बनाये गये हैं। कमरोंके आगे छायादार दहलान है । दूसरे मजिू पर भो हॉलके ऊपरी भागके दोनों ओर इसी प्रकार व्यवस्थित कमरोंकी पक्ति बनी हुई है । हॉल इतना कंचा बनाया गया है कि उसके ऊपरकी छतसे पूरे लयपुरको रमणीय छटाके दर्शन होते हैं । हके पौछेकी जोर नीचे मौर ठपरको मलिरूमे स्नानगृह मादिकौ सुन्दर ग्धवस्था हं 1 इस मन्य इमारत के पीछे मन्गतसे अतिथिमवनका भी निर्माण क्रिया गया है! चारो बैर खुला मैदान पर्याप्त है जिससे इस इमारततको शोभा दिगुणितत हो गई ह । मुख्य प्रवेदा द्वार भी कलात्मक बनाया गया हु। इस सबके दर्दान करने मात्स यह स्पष्ट हो जाता दँ कि शो सेठ पूरणचन्दजौ गोदीका गौर उनके पूरे परिवारने अपनो प्रगाढ श्रढाको इसमे ओत दिया हु । जयपुर राजस्यानमें ही नहीं पूरे देशमें यह स्मारक अपनी विशेषता रखता है । पूज्य श्री कानजी स्वामी छारा स्मारक भवनका उद्धाटनं मुभ यह्‌ सूचित करते हए अत्ति आनन्दका अनुभव हो रहा ह कि इसौ मार्च माहके मव्य सोनगढके माधघ्याट्मिक सन्त पूज्य श्रो कानजी स्वरामीके करकमलो हारा इसका उद्घाटन हो रहा है और उसी समय उन्हींक पुनीत करकमलो द्वारा ग्रन्यमालाके उक्त खिले हुए सौरभमय दो सुन्दर पुष्पोके दर्शन भी सबके लिए सुलभ होगे । आभाररदशेन सर्व प्रयम श्री १०८ आचार्य शिवसागरजी महाराज भर उनके समस्त सधका स्मरण कर लेना गपना पुनीत कतंब्य समझता हूं जिनके आाशोर्वाद स्वरूप तत्त्वचर्चाका आयोजन होकर उका सम्पक्‌ प्रकार से समापन हो सका । मै इस तत्तवचचकि आयोनक गौर प्रवन्धक ब्र० श्री सेठ हीरालालजी पाटनी निवाई और श्री ब्न० लाडमलजी जयपुरका सर्व प्रथम माभार मानना अपना प्रधान कतंब्य मानता हूँ । यह उक्त दोनों महानुभावों के परिश्रमका ही सुपरिणाम है कि जिसके कारण यह तत्त्वचर्चा एक ऐतिहासिक रूप घारण कर सको । मझे यहाँ दोनो पक्षके उन नामाकित विद्वानोके प्रति भी आभार प्रदर्शित करते हुए अपूर्व आनन्द का अनुभव हो रहा है, क्योकि उनके मनोयोग और दीघं अध्यवसायका ही यह्‌ सुपरिणाम है जो विशाक ्न्थके रूपमे भाज खमाजक्रो उपलन्ध हो रहा है । तवज्ञानकौ जागृतिमें समाज भौर दूरे मनीषी विद्वान पूरा छाभ उठावेंगे ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है ।




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