ज्ञानस्वभाव और ज्ञेयस्वभाव | Gyanswabhav Our Gyeyswabhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३१ ज्ञानी की दशा ३२ “अकिचित्कर हो तो निमित्त की उपयोगिता क्या ? ” -३३ जीवः अजीव का कर्ता नहीं है;-क्यों ? ३४ किसने संसार तोड़ दिया ? ३५ 'ईदवर जगत्‌ का कर्ता और “आत्मा पर -का कर्ता 'ऐसी : . मान्यतावाले दोनों समान मिध्याहष्टि हूं - ३६ ज्ञानी की इष्टि और ज्ञान -३७ द्रव्य को लक्ष मेँ रखकर क्रमबद्धपर्याय की बात -३८ परमार्थतः समी जीव ज्ञायकस्वमावी ह; -- किन्तु ऐसा कौन जानता है ? ३६ “क्रिमवद्धदर्याय” और उसके चार हष्टान्त '४० हे जीव ! तू ज्ञायक को लक्ष में लेकर विचार ४१ क्रमबद्धपना किस प्रकार है ? ं -४२ ज्ञान ओर ज्ञेय की परिणमनधारा; केवली भगवान के दृष्टन्त से साधकदरा की समभ ४३ जीव ओर जीव की प्रमुता.... . ` ८४ 'पर्याय-पर्याय मे ज्ञायकपने का ही कामः ४५ मूढ जीव मुँह आये वेसा बकता है . ४६ अज्ञानी की बिलकुल विपरीत बात; ज्ञानी की श्रपूर्वहृष्टि ४७ “सूख,....... ॥ ` ४८ विपरीत मान्यता का जोर 1! (उसके चार उदाहरण) ४६ ज्ञायक सन्मृख हो ! -यही जेनमार्ग है . ५० सम्यर्हष्टि-ज्ञाताः क्या करता है ? ` ४५१ निमित्त का अस्तित्व पराधीनता सूचक नहीं ४५२ रामचद्रजी के दृष्टान्त द्वारा धर्मात्मा के कार्य की समझ ५३ आहारदान का प्रसंग-ज्ञानी के कार्य की समम „` ४४ वनवास के हष्टान्त द्वारा ज्ञात्री के, कायं कौ समभ. ६५ १६६ १६७ १६०८ १६०८ १६ १६६ , १६६ १७० १७२ १७द्‌ १७३ १७५ १७६ १७७ १७८ १७६. १८० १८९१ १८२. १५८२




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