ज्ञानस्वभाव और ज्ञेयस्वभाव | Gyanswabhav Our Gyeyswabhav
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामजी माणेकचंद दोशी - Ramji Manekachand Doshi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३१ ज्ञानी की दशा
३२ “अकिचित्कर हो तो निमित्त की उपयोगिता क्या ? ”
-३३ जीवः अजीव का कर्ता नहीं है;-क्यों ?
३४ किसने संसार तोड़ दिया ?
३५ 'ईदवर जगत् का कर्ता और “आत्मा पर -का कर्ता 'ऐसी
: . मान्यतावाले दोनों समान मिध्याहष्टि हूं -
३६ ज्ञानी की इष्टि और ज्ञान
-३७ द्रव्य को लक्ष मेँ रखकर क्रमबद्धपर्याय की बात
-३८ परमार्थतः समी जीव ज्ञायकस्वमावी ह; -- किन्तु
ऐसा कौन जानता है ?
३६ “क्रिमवद्धदर्याय” और उसके चार हष्टान्त
'४० हे जीव ! तू ज्ञायक को लक्ष में लेकर विचार
४१ क्रमबद्धपना किस प्रकार है ? ं
-४२ ज्ञान ओर ज्ञेय की परिणमनधारा; केवली भगवान
के दृष्टन्त से साधकदरा की समभ
४३ जीव ओर जीव की प्रमुता.... .
` ८४ 'पर्याय-पर्याय मे ज्ञायकपने का ही कामः
४५ मूढ जीव मुँह आये वेसा बकता है
. ४६ अज्ञानी की बिलकुल विपरीत बात; ज्ञानी की श्रपूर्वहृष्टि
४७ “सूख,....... ॥
` ४८ विपरीत मान्यता का जोर 1! (उसके चार उदाहरण)
४६ ज्ञायक सन्मृख हो ! -यही जेनमार्ग है
. ५० सम्यर्हष्टि-ज्ञाताः क्या करता है ? `
४५१ निमित्त का अस्तित्व पराधीनता सूचक नहीं
४५२ रामचद्रजी के दृष्टान्त द्वारा धर्मात्मा के कार्य की समझ
५३ आहारदान का प्रसंग-ज्ञानी के कार्य की समम
„` ४४ वनवास के हष्टान्त द्वारा ज्ञात्री के, कायं कौ समभ.
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