ज्ञानस्वभाव और ज्ञेयस्वभाव | Gyanswabhav Our Gyeyswabhav

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Gyanswabhav Our Gyeyswabhav by रामजी माणेकचंद दोशी - Ramji Manekachand Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३१ ज्ञानी की दशा३२ “अकिचित्कर हो तो निमित्त की उपयोगिता क्या ? ”-३३ जीवः अजीव का कर्ता नहीं है;-क्यों ?३४ किसने संसार तोड़ दिया ?३५ 'ईदवर जगत्‌ का कर्ता और “आत्मा पर -का कर्ता 'ऐसी: . मान्यतावाले दोनों समान मिध्याहष्टि हूं -३६ ज्ञानी की इष्टि और ज्ञान-३७ द्रव्य को लक्ष मेँ रखकर क्रमबद्धपर्याय की बात-३८ परमार्थतः समी जीव ज्ञायकस्वमावी ह; -- किन्तु ऐसा कौन जानता है ?३६ “क्रिमवद्धदर्याय” और उसके चार हष्टान्त'४० हे जीव ! तू ज्ञायक को लक्ष में लेकर विचार४१ क्रमबद्धपना किस प्रकार है ? ं-४२ ज्ञान ओर ज्ञेय की परिणमनधारा; केवली भगवान के दृष्टन्त से साधकदरा की समभ४३ जीव ओर जीव की प्रमुता.... .` ८४ 'पर्याय-पर्याय मे ज्ञायकपने का ही कामः४५ मूढ जीव मुँह आये वेसा बकता है. ४६ अज्ञानी की बिलकुल विपरीत बात; ज्ञानी की श्रपूर्वहृष्टि ४७ “सूख,....... ॥` ४८ विपरीत मान्यता का जोर 1! (उसके चार उदाहरण) ४६ ज्ञायक सन्मृख हो ! -यही जेनमार्ग है. ५० सम्यर्हष्टि-ज्ञाताः क्या करता है ? `४५१ निमित्त का अस्तित्व पराधीनता सूचक नहीं४५२ रामचद्रजी के दृष्टान्त द्वारा धर्मात्मा के कार्य की समझ ५३ आहारदान का प्रसंग-ज्ञानी के कार्य की समम„` ४४ वनवास के हष्टान्त द्वारा ज्ञात्री के, कायं कौ समभ.६५ १६६ १६७ १६०८ १६०८१६ १६६, १६६१७०१७२१७द्‌ १७३१७५ १७६ १७७१७८ १७६. १८० १८९१ १८२. १५८२




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