प्रवचनसार | Pravachansaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थ्यः विर 1 १ पीठिका [९ ॥ कवित्त । या प्रकार गुरुपरम्परातें, मह दुतीय सिद्धान्त प्रमान | शुद्ध सुनयके उपदेशक ईत, श्च, ॒षरिराजत है परधान ॥ समयसार पंचास्तिकाय श्री, प्रबचनसार आदि युपहान । कुन्दकुन्दगुर मूर वखाने, टीका अमृतचन्द्रकृत जान ॥ ५६ ॥ कवि प्रार्थना 1 तामे प्रवचनसारकी, वाचि वचनिका मजु । छन्दखूप रचना र्चो, उर॒ धरि गुरुषदक्ंजु ॥ ५७ ॥ ५ ~~ कक - कहूँ परमागम अगम यह, कहूँ मम मति भतिहीन । शद्शि सपरशके हेतु जिमि, शिशु कर उऊंचौ कीन ॥ ५८ ॥ तिमि मम निरख सुधीरता, हँँसि कहिदेँं परवीन । काक चहत पिक-मधुर-धुनि, मूक चहत कवि कीन ॥ ५९ ॥ चौपाई 1 यह्‌ परमागम अगम वताई । मो मति अस्प रचत कविताई । सो ल्ख हसि कटि मति धीरा । रिरिप सुमन करि वेधत दीरा ॥ ६०॥ दोहा ) वार मरार चै जथा, मन्दिर मेह उटाव । बाख्छुद्धि भवि वृन्द तिमि; करन चहत कविताव ॥ ६१.॥ ` पूख यश्व सदहायतं, जिनशासनकी छाँहिं । हूं यद साहस कीन दै, सुमरि गुरु मानमांहिं ॥ ६२ ॥




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