नियमसार प्रवचन [भाग-६] | Niyamsar Pravachan [Bhag-6]

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Niyamsar Pravachan [Bhag-6] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाथा ७७ १ १ कायनयांजकत्वफा प्रायो जनिक विवरण श्रच्छा जस वताचो कि म जव किसी प्रकारका राग कर रहा हटं.तो इसका प्रयोजन किसे मिलेगा £. युर । उसक्रा फल किसे मि्ञेगा † मु प्रयोजन अर्थात्‌: फल क्या मिलेगा; कि झाकुलित होते रदेंगे। ठीक; यदह चौकी बन गयी, यह चौकी मिट गयी; यह चौकी जल रायी ये' सच काम: दो रहे हैं, इसका; प्रयोजन फिंसे ; मिलेंगा ? उन ही पुद्गलं स्कंघोंको । .क्या प्रयोजन सिलां.? यह मिला:कि उनकी सत्ता बनी रददी । ये पदाथ यदि .परिणसें नहीं. तो उनकी सत्ता कायम न रददेगी । इस कारण इन श्चेतनके नाना प्रकारके परिणमनोंका प्रयोजनः यष्ट है कि वे अपने सच््वसें त्रिकाल बने रहते: हैं; इसके छागे उस कार्यका,- प्रयोजन नहीं है । भव समक लीजिए कि.में शरोरोंका कराने वाला हूं क्या? नहीं हूं।नमेंकतो हूं और न में कराने वाला हूं ।. मैं तो शुद्ध चित्प्रकाशमाच्र हूं ऐसी स्वभावर्दष्टि रखने बाले साधु संत्त परमार्थ प्रति- क्रमण क्रिया करते हैं कारयितृत्वका निणय-- कायंका प्रयोजन जिसे मिले उसे कराने वाला कते है । जसे लोकव्यवहारमें कष्टे है कि माक्लिकने नोकरसे काम कराया तो उस कामका फल किसे मिलेगा { जिसे मिले उसीको कराने - चाला कहते हैं । श्रव यद्यं परमार्थदटिसि निर्णय - कीजिये. श्योर सवं प्रथम स्व में ही निरखिये कि किसी भी पदा्थेके परिणमतका. फल -क्या मुके मिलता है ? चू कि एक पदार्धका परिणमन किसी अन्य पदार्थसें छा नहीं सकता है इस कारण किसी भी. पदायथेकः परिणमन का फलत चस्तुतः-अन्यको नहीं मिलता है। जो परिणम. रहा है ञसके परिणमनका फल उसीको भिलता है । परमां इध्रिसि निरखते जाइए कि.किसी भी पदायके परिण- मनका फल क्या-क्या मिलता जा रहा है ? मूल फल तो यह है कि ,पदाथ के परिणमनका फल पदाथका सूत्व बना रहना है। नही .परिणमन तो सच्च नहीं रद सकता हैं इसलिए एक ही उतर लेते जाइये समस्त पदार्थों में । बही उत्तर मूल उत्तर स्वयंमें घटित कर लीजियेगा,। श्रमूतं अजीव 'द्रव्योंका कार्यप्रयोजकत्व-- धर्मंद्रन्य क्यों परिणम रहार? श्रपना संत्व रखनेके लिए परिणशस रहा है। झधम द्रव्य वयों परिंम रहा है ? घह भी ्रपनां सत्त रखनेके लिए परिम रहा.दै-।-इसी - प्रकार श्राकाशाद्रव्य श्रीर्‌ कालद्रव्य वयों परिणम रहे हैं ? ये भी झपना- श्पना सत्त्वं रखनिके लिए परिण म रहें हैं । वेंसे यह थी बहा जा सकता है कि कालद्रव्य शम्य दव्येंका परिसर सन करनेके लिए परिरमं रहा है; तो - थों निमित्त दृष्बिं। दो उत्तर हैं चद छोपार्कि ध्त्तर है; पारसर्थिक नहीं




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